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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण की मधुर ध्वनि आयी। उसने सभासदों से पूछा-यह ध्वनि कहां से आ रही है। मगर किसी को उसका पता नहीं था। अनुचरों को भेजकर तलाश की गई, उन्होंने आकर निवेदन किया-नगर के बाहर एक भव्य-भवन में कृष्ण के पुत्र प्रद्य म्न और शांब ठहरे हुए हैं । उनके साथ वैदर्भी भी है। राजा को समझने में देर न लगी कि यह सारी करामात प्रद्य म्न की है। राजा ने अपने भागिनेय और जामाता प्रद्य म्न को बुलाया, और उत्सवपूर्वक वैदर्भी का प्रद्य म्न के साथ पाणिग्रहण संस्कार सम्पन्न किया। फिर वैदर्भी को लेकर प्रद्य म्न द्वारिका आया, माता रुक्मिणी अत्यधिक प्रसन्न
७५. (क) त्रिषष्टि० ८१७१३८-८६
(ख) प्रद्युम्नचरितम्-महासेनाचार्य, सर्ग ८, ६ पृ० ८६-१७४ (ग) प्रद्युम्न चरित्र .. रत्नचन्द्र गणी (घ) वसुदेवहिण्डी-पृ० ६८-१००, में प्रस्तुत कथा अन्य रूप से
आयी है। विस्तार भय से उसे न लिखकर मूल ग्रन्थ अवलोकन की सूचना करता हूँ।
-लेखक
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