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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण
माता से पूछा- मां तुम क्यों मुरझा गई हो मुझे कारण बताओ, मैं तुम्हारी भावना पूर्ण करूंगा । माता रुक्मिणी ने उसे सारी बात सुनादी ।
प्रद्य ुम्न ने कहा- माता, आप चिन्ता न करें। मैं आपकी इच्छा को पूर्ण करूंगा । प्रद्युम्न शबकुमार को साथ लेकर भोजकट नगर गया । एक ने किन्नर का और दूसरे ने चाण्डाल का रूप धारण किया । संगीत कला के द्वारा नगर निवासियों के मन को उन्होंने मुग्ध कर दिया । रुक्मि राजा ने जब उनके मधुर गायन की प्रशंसा सुनी तब उन्हें अपने पास बुलाया। संगीत की सुमधुर स्वरलहरी पर वह भी झूम उठा। उस समय उसकी लड़की वैदर्भी भी वहां आगई और पिता की गोद में बैठ गई । उसने भी उनका गायन सुना । गायन पूर्ण होने पर राजा रुक्मि ने उन्हें विराट् सम्पत्ति दी और पूछा आप कहां से आ रहे हैं ? उन्होंने बताया कि हम स्वर्ग से द्वारिका आये, जहां वासुदेव श्रीकृष्ण राज्य कर रहे हैं । उसी समय वैदर्भी ने पूछा - कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी का प्रद्य ुम्न नामक पुत्र है, क्या तुम उनको जानते हो ?
शांब ने कहा- जो रूप में कामदेव के सदृश है, जो पृथ्वी का शृंगार है ऐसे महापराक्रमी प्रद्युम्न को कौन नहीं जानता ?
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यह सुन वैदर्भी के मानस में प्रद्य ुम्न के प्रति प्रेम पैदा हुआ उसी समय राजा का हाथी उन्मत्त होकर अपने स्थान को छोड़कर भाग गया। वह नगर में उपद्रव करने लगा । कोई भी महावत उसे वश में न कर सका । उसने उपद्रव से तंग आकर नगर में यह उद्घोषणा करवाई कि जो कोई भी हाथी को वश में कर लेगा उसे राजा मनोवांच्छित वस्तुएं प्रदान करेगा। किसी ने भी उस उद्घोषणा को स्वीकार नहीं किया, अन्त में प्रद्युम्न और शांब ने उद्घोषणा स्वीकार की । उन्होंने उसी समय संगीत की सुमधुर लहरी से हाथी को वश में कर लिया और उसी हाथी पर आरूढ़ होकर मस्ती में झूमते हुए हस्तिशाला में आये । हाथी वहां बांध दिया । राजा ने प्रसन्नता से दोनों को बुलाया और कहा- तुम्हें जो चाहिए सो मांगलो |
उन्होंने कहा- राजन् ! हमारे यहाँ भोजन बनाने वाला कोई नहीं है, अतः आप अपनी पुत्री वैदर्भी को हमें दे दें । वैदर्भी का नाम
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