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द्वारिका में श्रीकृष्ण ...
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नारद ने कहा - महाज्ञानी अतिमुक्तकुमार मुक्त हो गये हैं। आप चिन्ता न करें, मैं आपके प्रश्न का उत्तर महाविदेह क्षेत्र में विराजित सीमंधर स्वामी से पूछकर कहँगा। ___ नारद ऋषि सीधे सीमंधर स्वामी के पास गये। उन्होंने प्रश्न किया। उत्तर में सीमंधर स्वामी ने फरमाया-वह कालसंवर नामक विद्याधर के घर मेघकूट नगर में है और वहां पर वह सोलह वर्ष तक रहेगा। पूर्वबद्ध कर्म के कारण सोलह वर्ष का विरह रहेगा। भगवान् की वाणी को श्रवण कर नारद बहुत प्रसन्न हुए, और जहां प्रद्युम्न कुमार था वहां पहुँचे। रुक्मिणी की तरह ही प्रद्य म्नकुमार का रूप निहारकर नारद ऋषि मन ही मन प्रसन्न हुए। वहां से वे शीघ्र द्वारिका आये और कृष्ण व रुक्मिणी को सारी बात बताई। ___ कालसंवर विद्याधर के वहां प्रद्युम्नकुमार बड़े होने लगे। विद्याधर से सभी विद्याओं में उसने निपुणता प्राप्त की । प्रद्य म्न के अतिशय सुन्दर रूप को निहार कर काल संवर विद्याधर की पत्नी कनकमाला उस पर मुग्ध हो गई । एक दिन एकान्त में कुवंर को लेजाकर कनकमाला ने कहा-अरे प्रद्य म्न ! अब तुम्हारी युवावस्था आ रही है, मैं तुम्हारे रूप पर मुग्ध हैं, मैं तुम्हारी जन्मदात्री माता नहीं हूँ। मैंने तो केवल पालन-पोषण किया है अतः मेरे साथ स्वेच्छा से आनन्दक्रीडा करो।
प्रद्य म्न--आपकी बात तो ठीक है, पर कालसंवर विद्याधर और उनके पुत्र मेरे साथ युद्ध करेंगे तो मैं उनसे किस प्रकार जीत सर्केगा? ___ कनकमाला--प्रद्य म्न ! तुम इस बात से क्यों डरते हो ? मेरे पास गौरी और प्रज्ञप्ति नामक दो महान् विद्याए हैं। जिनसे तुम सम्पूर्ण विश्व पर विजय प्राप्त कर सकते हो। मैं तुम्हारे रूप पर मुग्ध हूँ, इसलिए ये विद्याए तुम्हें देती हूँ। __ प्रद्य म्न ने वे दोनों विद्याए ग्रहण की और कुछ ही समय में उन दोनों विद्याओं को सिद्ध कर लिया। उसने देखा, मधुर बोलने से मुझे दोनों महान् विद्याए मिल गई।
रानी कनकमाला ने कुछ दिनों के पश्चात् पुनः स्वेच्छा पूर्वक क्रीडा करने की अभ्यर्थना की।
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