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________________ २४२ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण साधारण जीव के आने से उसका उदर अभिवृद्धि को प्राप्त होने लगा। एक ही दिन दोनों के पुत्र हुए। रुक्मिणी के पुत्र का नाम प्रद्य म्न रखा गया और सत्यभामा के पुत्र का नाम भानुक ।६० ___श्रीकृष्ण प्रद्य म्न कुमार को खिला रहे थे। उस समय रुक्मिणी के पूर्व भव का वैरी देव धूमकेतु वहां पर आया, और रुक्मिणी का रूप बनाकर कृष्ण के हाथ में से प्रद्य म्न कुमार को लेकर चल दिया। वह देव उसे वैतादयगिरि पर लाया, और एक शिला पर उसे रखकर चला गया। उस समय कालसंवर नामक एक विद्याधर अग्निज्वाल नगर से अपने नगर जा रहा था। उसने उस तेजस्वी बालक को देखा । सोचा--अरे, यहां पर किसने छोड़ा है इसे । वह उसे लेकर सीधा अपने घर आया, और अपनी पत्नी कनकमाला को पुत्र रूप में अर्पित किया। नगर में यह चर्चा फैलादी गई कि मेरी रानी गूढ गर्भा थी, उसने पुत्र का प्रसव किया है । पुत्रोत्सव उत्साह के साथ मनाया गया। __ कुछ समय के पश्चात् रुक्मिणी ने आकर कृष्ण से पुत्र की याचना की। कृष्ण ने कहा-अभी तो तुम ले गई थीं।। रुक्मिणी- नहीं पतिदेव ! मैं तो नहीं ले गई, तब कृष्ण ने उसकी सर्वत्र तलाश की, पर प्रद्युम्न कहीं पर नहीं मिला । कृष्ण और रुक्मिणी अत्यन्त चिन्तातुर हो गये।६९ कुछ दिनों के पश्चात् नारद ऋषि वहां पर आये। नारद से श्रीकृष्ण ने पूछा-बतलाइये महाराज, हमारा पुत्र प्रद्य म्न कहां गया ? कौन उसे हरण करके ले गया ? ६८. (क) त्रिषष्टि० ८।६।१२७-१२६ (ख) भव-भावना २६४६ ६६. वसुदेव हिण्डी के अनुसार रुक्मिणी के वहां कृष्ण देखने जाते हैं तभी कोई देव उसे हरण कर जाता है - रुप्पिणी य पुण्णे पसवणसमए पसूया पुत्त । कयजायकम्मस्स य से बद्धा मुद्दा वासुदेवनामंकिया, निवेदितं च परिचारियाहिं कुमारजम्मं कण्हस्स । सो रयणदीविकादेसियमग्गो अइगतो रुप्पिणिभवणं । चक्खुविसयपडिओ य से कुमारो देवेणे अक्खित्तो।। ----वसुदेवहिण्डी पृ० ८३ पेढिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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