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भगवान् अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण प्रकार वैदिक राधः या राधा का व्यक्तिकरण है । राधा पवित्र तथा पूर्णतम आराधना का प्रतीक है। 'आराधना की उदात्तता उसके प्रेम पूर्ण होने में है। जिस आराधना या अर्चना में विशुद्ध प्रेम नहीं झलकता, जो उदात्त प्रम के साथ नहीं सम्पन्न की जाती, क्या वह कभी सच्ची आराधना कहलाने की अधिकारिणी होती है ? कभी नहीं। इस प्रकार राधा शब्द के साथ प्रेम के प्राचुर्य का, भक्ति की विपुलता का, भाव की महनीयता का सम्बन्ध कालान्तर में जुड़ता गया और धीरे-धीरे राधा विशाल प्रम की प्रतिमा के रूप में साहित्य और धर्म में प्रतिष्ठित हो गई।६४
जैन और वैदिक ग्रन्थों में श्रीकृष्ण की मुख्य आठ पत्नियों के नाम आये हैं। उनमें कहीं भी राधा का नाम नहीं है। यदि राधा के साथ कृष्ण का गहरा सम्बन्ध होता तो पत्नी के रूप में अवश्य ही उसका उल्लेख मिलता । हमारी अपनी दृष्टि से भी राधा की कल्पना बाद के कवियों ने की है। प्रद्युम्न : ___ एक समय अतिमुक्त मुनि रुक्मिणी के महल में पधारे । उसी समय सत्यभामा भी वहीं पहुँच गयी । रुक्मिणी ने मुनिराज से पूछा-क्या कभी मातृत्व का गौरव मुझे भी प्राप्त होगा? ___ मुनि विशिष्ट ज्ञानी थे। उन्होंने कहा-हाँ, तुम्हारे श्रीकृष्ण जैसा पुत्र होगा।६५ इतना कहकर मुनि वहां से चल दिये । सत्यभामा बोली-मुनि ने मुझे लक्ष्य करके भविष्यवाणी की है । रुक्मिणी ने उसका प्रतिवाद किया और कहा कि मुझे कहा है। दोनों निर्णय करने के लिए श्रीकृष्ण के पास आयीं। उस समय वहां दुर्योधन भी आया हुआ था । कृष्ण उससे वार्तालाप कर रहे थे । सत्यभामा ने
६४. भारतीय वाङमय में श्री राधा-पं० बलदेव उपाध्याय पृ० ३१ ६५. रुक्मिण्याश्च गृहेऽन्येा रतिमुक्तर्षिरागतः ।
तं दृष्ट्वा सत्यभामापि तत्र वाशु समाययौ ॥ रुक्मिण्याप्रच्छि स मुनिः किं मे स्यात्तनयो न वा । भावी कृष्णसमः पुत्रस्तवेत्युक्त्वा ययौ च सः ।
-त्रिषष्टि० ८।६।११०-११
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