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द्वारिका में श्रीकृष्ण
२३६ देवी भागवत में राधिका को श्रीकृष्ण के वामाङ्ग से उत्पन्न हुई बताया है। भविष्यपुराण ६१ और आदिपुराणवर में भी राधा के सम्बन्ध में वर्णन है। इनके अतिरिक्त भी राधा का वर्णन अनेक स्थलों पर हुआ है । राधा के बिना कृष्ण का नाम ही आधा है।
श्री मद्भागवत महापुराण में स्पष्ट रूप से राधा का उल्लेख कहीं नहीं मिलता है। श्रीकृष्ण का विशद चित्रण श्रीमद्भागवत में हआ है। उसमें राधा का वर्णन न होने से राधा की प्राचीनता के सम्बन्ध में विद्वानों को सन्देह उत्पन्न होता है । यही कारण है कि पाश्चात्य विद्वान् राधा को ईश्वी शताब्दी के बाद की कल्पना मानते हैं। डाक्टर हरवंशलाल का अभिमत है कि यद्यपि पौराणिक पण्डित राधा का सम्बन्ध वेदों से लगाते हैं परन्तु ऐतिहासिक प्रमाणों के अभाव में कृष्ण की प्रेमिका राधा को वेदों तक घसीटना असंगत ही प्रतीत होता है । गोपालकृष्ण की कथाओं से परिपूर्ण भागवत, हरिवंश और विष्णपुराण आदि प्राचीन ग्रन्थों में राधा का अभाव अनेक प्रकार के सन्देहों को जन्म देता है।
पं० बलदेव उपाध्याय लिखते हैं 'मेरी दृष्टि में 'राधः' तथा 'राधा' दोनों की उत्पत्ति "राध वद्धौ' धातु से है, जिसमें 'आ' उपसर्ग जोड़ने पर आराध्यति धातुपद बनता है । फलतः इन दोनों शब्दों का समान अर्थ है-आराधना, अर्चना, अर्चा । 'राधा' इस
६०. क) गणेशजननी दुर्गा राधा लक्ष्मीः सरस्वती । सावित्री च सृष्टि विधौ प्रकृतिः पंचधास्मृता ।।
-नवमस्कंध अ० १ श्लोक १ (ख) देवीभागवत-६।११४४-से ५०
(ग) देवी भागवत ६।५०।१०-११ ६१. तदव्ययात्समुद्भूतोराधाकृष्णः सनातनः । एकीभूतं द्वयोरंग राधाकृष्णो बुधे स्मृतः ॥
-भविष्यपुराण १५६ ६२. अथापरा राधिकायाः सख्यः शश्वन्मनोरमाः । विमला राधिका भृङ्गी निभृताऽभिमता परा॥
--आदिपुराण ४१ (वैदिक) ६३. सूर और उनका साहित्य-डा० हरवंशलाल शर्मा पृ० २६५
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