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________________ द्वारिका में श्रीकृष्ण २३१ तोड़ दिया, कवच को छेद दिया, घोड़ों को समाप्त कर दिया। अन्त में उसकी दाढ़ी मूछों को नौंचकर कहा-तू मेरे लघुभ्राता की पत्नी का भाई है अतः मैं तुझे नहीं मारता। ऐसा कहकर उसे छोड़ दिया। १९ रुक्मि लज्जा के कारण कुडिलपुर नहीं लौटा, उसने वहीं भोजकट नगर बसाया और उसमें रहने लगा ।२० श्रीकृष्ण द्वारिका लौटे। रुक्मिणी के साथ विधिवत् विवाह किया२१ और सत्यभामा के सन्निकट का आवास-उसे रहने के लिए दिया। रुक्मिणी द्वारिका के वैभव को देखकर मुग्ध हो गई। उसे कृष्ण ने पट्टरानी का गौरव प्रदान किया। ___ इस प्रकार सत्यभामा, रुक्मिणी, जाम्बवती, लक्ष्मणा, सुसीमा, गौरी, पद्मावती, गांधारी, ये आठों कृष्ण की पट्टरानियाँ हुई ।२२ अग्रमहिषियाँ : __ जैन दृष्टि से कृष्ण की आठों अग्रम हिषियों का संक्षिप्त में परिचय इस प्रकार है :(१) सत्यभामा : यह महाराजा उग्रसेन की पुत्री थी। जिस प्रकार शची इन्द्र को प्रिय है वैसे ही वह कृष्ण को प्रिय थी ।२३ १६. त्रिषष्टि० ८।३।५०-५७ २०. एवमुक्तश्च मुक्तश्च ह्रिया नेयाय कुडिनम् । रुक्म्यस्थात् किं तु तत्रैव न्यस्य भोजकटं पुरम् ।। -त्रिषष्टि० ८।६।५८ २१. गांधर्वेण विवाहेन परिणीयाथ रुक्मिणीम् । स्वच्छंदं रमयामास रजनीं तां जनार्दनः ।। -त्रिषष्टि ० ८।६।६४ २२. (क) त्रिषण्टि० ८।६।५-१०६ (ख) कण्हस्स णं वासुदेवस्स अट्ठ अग्गम हिसीओ अरहओ णं अरिट्टनेमिस्स अंतिए मुडा भवेत्ता आगाराओ अणगारियं पव्वइया सिद्धाओ जाव सव्वदुक्खप्पहीणाओ। तं जहा - पउमावई, य गोरी गंधारी लक्खणा सुसीमा य जंबवई सच्चभामा रुप्पिणी कण्हअग्गम हिसीओ । --स्थानाङ्ग ८।७६३, पृ. २६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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