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गोकुल और मथुरा में श्रीकृष्ण
२०१ गए। सभी लोग निद्राधीन थे किन्तु दरवाजे पर पिंजरे में बद्ध उग्रसेन उस समय भी जग रहे थे। उन्होंने साश्चर्य पूछा-कौन है ? वसूदेव ने धीरे से कहा-कंस का शत्र है। यह तुम्हें कारागृह से मुक्त करेगा। शत्रु का निग्रह करेगा, किन्तु यह बात अत्यन्त गोपनीय है, किसी से आप कहें नहीं।
वसुदेव बालक को लेकर नन्द के घर पहुँचे । उस समय नन्द की धर्मपत्नी यशोदा ने एक पुत्री को जन्म दिया, अतः वसुदेव ने उसे अपना पुत्र दिया और उसके बदले में उसकी पुत्री को लेकर वे पुनः देवकी के पास आये और देवकी को यशोदा की पुत्री दे दी।
वसुदेव ज्योंही देवकी के कमरे से बाहर आये त्योंही द्वारपालों की निद्रा खुल गई। 'कौन जन्मा है', कहते हुए कन्या को देखा।
वे उसी समय बालिका लेकर कंस के पास गये, बालिका को देखकर कंस ने अपनी मूछों पर हाथ फेरते हुए कहा-अतिमुक्त मुनि ने भविष्यवाणी की थी कि देवकी का सातवां गर्भ तुझे मारेगा किन्तु वह तो लड़की के रूप में पैदा हआ है, मनि की भविष्यवाणी मिथ्या हो गई। यह बालिका मेरा क्या बिगाड़ सकती है ? बालिका में शक्ति कहाँ है ?
५. नंदस्य गोकुले नीत्वा मुचेमं मम बालकम् । गृहे मातामहस्येव तत्र वधिष्यते ह्यसौ ॥
-त्रिषष्टि० ८।५।१०२-१०४ ६. (क) वसुदेवहिण्डी
(ख) त्रिषष्टि० ८।५।।१०५-११०
(ग) भव-भावनां गा० २१६३ से २१६५ पृ० १४६ ७. (क) सुतं दत्वा यशोदायै शौरिरादाय तत्सुताम् ।
आनीय देवकीपावे सुतस्थानेऽमुचत् क्षणात् ॥११२। (ख) भव-भावना गा० २१६६-२१६७ ८. शौरिश्च निर्ययौ ते च प्रबुद्धा: कंसपूरुषा ।
किं जातमिति जल्पंतो ददृशुस्तत्र तां सुताम् ॥११३। ६. तां कंसस्यार्पयंस्तेऽथ दध्यौ कंसोऽपि यो मम । मृत्यवे सप्तमो गर्भः स स्त्रीमात्रमभूदसौ ॥११४।
-सभी स्थल त्रिषष्टि०८१५
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