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कंस : एक परिचय
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कंस के प्रस्ताव को वसुदेव ने स्वीकार किया और वे कंस के साथ वहां जाने को तैयार हुए। मार्ग में ही नारद ऋषि मिल गये । उन्होंने उनका हार्दिक सत्कार किया। नारद ऋषि कंस और वसुदेव पर बहुत प्रसन्न हुए । नारद ऋषि वसुदेव और कंस के जाने के पूर्व ही देवकी के पास पहुँचे और दिल खोलकर वसुदेव के रूप सौन्दर्य व स्वभाव की प्रशंसा की । देवकी नारद के कहने से वसुदेव पर मुग्ध हो गई । १७
कंस और वसुदेव वहां पहुँचे । देवक राजा के सामने कंस ने विवाह का प्रस्ताव रखा। पहले देवक राजा आनाकानी करता रहा पर अन्त में देवकी की तीव्र इच्छा होने से देवकी का वसुदेव के साथ विवाह कर दिया ।" राजा देवक ने पाणिग्रहण के समय विराट् सम्पत्ति के साथ दस गोकुल के अधिपति नन्द को भी गायों के साथ अर्पित किया । १९
विवाह कर कंस के साथ वसुदेव मथुरा आये, विवाह की प्रसन्नता में एक महान् महोत्सव का आयोजन किया । २०
अतिमुक्त मुनि की भविष्यवाणी :
महोत्सव की तैयारियाँ चल रही थीं । उस समय कंस के लघुभ्राता अतिमुक्त मुनि, जिनका शरीर उग्र तप की साधना करने से अत्यन्त कृश हो चुका था, जिन्हें अनेक लब्धियाँ प्राप्त हो चुकी थीं, भिक्षा के लिए कंस के वहां आये । उस समय कंस की पत्नी जीवयशा अभिमान की मदिरा से बेभान बनी हुई थी । वह अतिमुक्त मुनि से अमर्यादित वाणी में इस प्रकार बोली- "अरे देवर ! तुम ठीक समय
१७. त्रिषष्टि० ८।५।५४ से ५६
१८. जज्ञ े विवाहः पुण्येऽह्नि देवकी-वसुदेवयोः । तारतारं गीयमानैर्नवैर्धवल मंगलैः
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- त्रिषष्टि० ८|५|६५-६८
१६. देवको वसुदेवाय ददौ स्वर्णादि भूरिशः । दशगोकुलनाथं नंद गोकोटिसंयुतम् ॥
च
२०. त्रिषष्टि० ८५७०
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— त्रिषष्टि० ८।५।६६
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