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वसुदेव का देवकी के साथ विवाह :
जरासंध ने समुद्रविजय जी आदि का सत्कार किया । वे पुनः वहां से सौर्यपुर आये । वसुदेव का रूप अत्यन्त सुन्दर था, उनके दिव्य, भव्य एवं चित्ताकर्षक रूप को निहार कर अनेकों महिलाए उन पर मुग्ध हो जाती थीं, किसी ने समुद्रविजयजी से कहा कि वसुदेव जिधर से भी निकलते हैं महिलाएं उन पर न्यौछावर हो जाती हैं ! 11 समुद्रविजय जी ने वसुदेव को राजमहलों में और बगीचों में ही घूमने का प्रेम से आदेश दिया । १२ एक दिन कुब्जा दासी ने यह बात वसुदेव को बता दी, वसुदेव वहां से विदेश यात्रा के लिए निकल पड़ते हैं । 23 वसुदेव निदानकृत होने से स्त्री - वल्लभ थे । शताधिक स्त्रियों के साथ उनका पाणिग्रहण होता है । उन सभी स्त्रियों में दो मुख्य स्त्रियां थीं - रोहिणी और देवकी । रोहिणी से बलभद्र पुत्र हुए उनका अपर नाम राम भी था । १४ देवकी का वर्णन इस प्रकार है ।
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एक समय कंस ने बड़े ही स्नेह से वसुदेव को मथुरा बुलाया । समुद्रविजयजी की आज्ञा लेकर वसुदेव मथुरा गये । १५ जीवयशा के साथ बैठे हुए कंस ने वसुदेव से निवेदन किया कि मृत्तिकावती में मेरे चाचा देवक राजा की पुत्री देवकी है उसके साथ आपको विवाह करना पड़ेगा ।" १६
१०. उग्रसेनस्य
चाभूवन्नति मुक्तादयः सुताः ।
अतिमुक्तः पितृदुःखात् प्रव्रज्यामाददे तदा ॥
११. त्रिषष्टि० ८।२।११५-११७
१२. त्रिषष्टि०८।२।१२१-१२२
भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण
१५. त्रिषष्टि० ८५५४३
१६. वहीं० ८।५।४४-४६
१३. त्रिष्टि०८।२।१२३-१२६
१४. राम इत्यभिरामं च तस्य नामाकरोत् पिता । क्रमाच्च ववृधे रामः सर्वेषां रमयन्
मनः ॥
— त्रिषष्टि० ८५,२५-२६
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— त्रिषष्टि० ८।२।१०८
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