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भारतीय साहित्य में श्रीकृष्ण
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समुदाय से कहा था-'पूर्व जन्म में सारिपुत्र वासुदेव था, आनन्द, अमात्य रोहिणोय्य था और स्वयं मैं घट पण्डित था।" अन्तर :
घट जातक की इस कथा से जैन और वैदिक कथा में पर्याप्त अन्तर है । इस कथा के अनुसार कंस के पिता का नाम उग्रसेन न होकर मकाकंस था। उसकी बहिन का नाम देवकी न होकर देवगम्भा (देवगर्भा) था, जो उसकी बहिन थी। कंस की राजधानी मथुरा न होकर असितंजन नामक नगरी थी और उसके राज्य का नाम कंसभोग था। कंस के अनुज का नाम उपकंस था। इसमें देवकी का नाम नहीं है । कंस और उपकंस अत्याचारी तथा प्रजापीड़क नहीं थे। वे अपनी बहिन के प्रति भी अधिक निर्दय नहीं थे, वे यह जानते थे कि उसके पुत्र से ही उनका विनाश होगा।
मथुरा का राजा सागर और उसका लघु भाई उपसागर था। उपसागर ही पुराणों का वसुदेव है । जो मथुरा से भागकर असितंजन में कंस-उपकंस की शरण में गया और वहां आनन्दपूर्वक रहने लगा। उसने छिपकर देवगम्भा से प्रेम किया तो भी कंस उपकंस ने कुछ नहीं कहा, किन्तु उसके साथ अपनी बहिन का विवाह कर गोवडढमान (गोवर्धन) ग्राम भी दे दिया। ताकि वे दोनों वहां आनन्द से रह सकें। उन्होंने इतनी सावधानी रखी थी कि देवगम्भा के कोई पुत्र न हो। यशोदा का नाम नन्दगोपा बताया गया है। उसके पति का नाम नन्द न होकर अंधकवण है। नन्दगोपा के दस पुत्रियाँ हुई और देवगम्भा के दस पुत्र, वे परस्पर बदल लेते हैं किन्तु वे सभी जीवित रहते हैं, कंस किसी की भी हत्या नहीं करता।
देवगम्भा के दस पुत्रों में वासुदेव सबसे बड़ा था और बलदेव उससे छोटा । प्रद्य म्न, अर्जुन, अंकुर (अक्रू र) आदि को भी वासुदेव का भाई बताया गया है । वासुदेव सहित दसों भाइयों को लुटेरा, निर्दयी और सर्वजनसंहारक लिखा है । उन्होंने अपने मामाओं को मारकर, जम्बूद्वीप के हजारों राजाओं को चक्र से काटकर उनका राज्य छीन लिया था। इस प्रकार घटनाओं और नामों में अन्तर होने पर भी कथा के हार्द में जो सादृश्य है वह भी पाठकों की दृष्टि में आए विना नहीं रहेगा।
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