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भारतीय साहित्य में श्रीकृष्ण
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जिनसे एक अर्थ में रामायण और दूसरे अर्थ में महाभारत की कथा कुशलता से लिखी गई है । दूसरे शब्दों में कहा जाय तो एक अर्थ में राम तथा द्वितीय अर्थ में कृष्ण कथा का सृजन होता है । ध्वन्यालोक के रचयिता आनन्दवर्धन ने निम्न शब्दों में उसकी प्रशंसा लिखी है
द्विसंधाने निपुणतां सतां चक्र े धनंजयः, यथा जातं फलं तस्य, सतां चक्र े धनंजयः ।
प्रद्य ुम्न चरित २२ – इसके रचयिता महासेनाचार्य हैं । स्व० नाथूराम प्रेमी के अभिमतानुसार इसका रचनाकाल सं० १०३११०६६ है । इस में श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के पराक्रम का वर्णन है । प्रद्य ुम्न चरित नाम से अन्य लेखकों के भी अनेक ग्रन्थ हैं ।
भट्टारक सकलकीर्ति ने भी जिनसेन और गुणभद्र के महापुराण आदि के अनुसार ही हरिवंशपुराण और प्रद्युम्न चरित्र लिखा है । जयपुर के विभिन्न ग्रन्थ भण्डारों में इन ग्रन्थों की कई हस्तलिखित प्रतियां उपलब्ध हैं२३ ।
पाण्डव पुराण ४. इसके लेखक भण्डारक शुभचन्द्र हैं । पाण्डवपुराण की कथा हरिवंशपुराण में वरित पाण्डवों की कथा पर आधारित है ।
भट्टारक श्री भूषण का पाण्डवपुराण भी सुन्दर रचना है । इन्हीं का लिखा हुआ एक हरिवंशपुराण भी मिलता है, जिसका रचना काल सं० १६७५ है । २५ महाकवि वाग्भट्ट का नेमिनिर्वाण काव्य, ब्रह्मचारी नेमिदत्त का नेमिनाथ पुराण (सं० १५७५ के
२२. पं० नाथूराम प्रेमी द्वारा सम्पादित और हिन्दी ग्रन्थ कार्यालय बम्बई द्वारा प्रकाशित ।
२३. जिनवाणी - जुलाई १६६६, पृ० २६ ।
२४. प्रो० ए० एन्० उपाध्ये द्वारा सम्पादित होकर सन् १९५४ में जैन संस्कृति संरक्षक संघ सोलापुर से प्रकाशित हुआ है ।
२५. ( क ) जैन साहित्य और इतिहास - नाथूराम प्रेमी पृ० ३८३-८४ (ख) संस्कृत साहित्य का इतिहास - वाचस्पति गैरोला - पृ०
३६१-६२ ।
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