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________________ | पन्द्रह श्रीकृष्ण भागवत धर्म या वैष्णव सम्प्रदाय के पुरस्कर्ता हैं। करीब दो ढाई हजार वर्षों से भागवत धर्म और विष्णु पूजा का प्रचार भारत में निरन्तर दिखाई देता है। श्रीकृष्ण भक्ति के अनेक सम्प्रदाय प्रतित हैं। करोड़ों व्यक्ति श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं। भागवतधर्म वैष्णवसम्प्रदाय अहिंसा प्रधान है, इधर अहिंसा जैन धर्म का सबसे बड़ा सिद्धान्त है ही। इस तरह भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण के मन्तव्य बहुत कुछ मिलते-जुलते हैं । यह दोनों महापुरुषों के घनिष्ठ सम्बन्ध का प्रबल प्रमाण है। श्रीकृष्ण को हुए पांच हचार से कुछ वर्ष अधिक हुए हैं। अत: जैन मान्यता अरिष्टनेमि के समय सम्बन्धी विचारणीय बन जाती है। क्योंकि दोनों समकालीन व्यक्ति थे तो उनका समय भी एक ही होना चाहिए। करीब ३०-३५ वर्ष पूर्व, जैन आगमादि ग्रन्थों में श्रीकृष्ण का जो महत्वपूर्ण चरित्र मिलता है उसकी ओर मेरा ध्यान गया और मैंने एक शोधपूर्ण लेख शान्तिनिकेतन की हिन्दी विश्वभारती पत्रिका में 'जैन आगमों में । श्रीकृष्ण' के नाम से प्रकाशित करवाया जिससे जैनेतर विद्वानों का भी श्रीकृष्ण सम्बन्धी जैनग्नन्थोक्त सामग्री की ओर ध्यान आकर्षित हो सके । उसके कुछ वर्ष बाद माननीय विद्वान डा० वासुदेवशरण जी अग्रवाल के अनुरोध से उस लेख में कुछ और परिवर्तन और परिवर्धन करके श्री कन्हैयालाल पोद्दार अभिनन्दन ग्रन्थ में मैंने अपना निबन्ध छपवाया । तदनन्तर श्रीचन्दजी रामपुरिया की एक स्वतन्त्र लघु पुस्तिका तेरापंथी महासभा कलकत्ता से प्रकाशित हुई। इस विषय पर सबसे महत्वपूर्ण कार्य श्रीदेवेन्द्र मुनि जी ने प्रस्तुत नन्थ के रूप में सम्पन्न किया है। उन्होंने जैन सामग्री के अतिरिक्त बौद्ध और पौराणिक सामग्री का भी उपयोग करके श्रीकृष्ण का पठनीय जीवन चरित्र इस नन्थ में संकलित किया है । अतः प्रस्तुत नन्थ का महत्व निर्विवाद है। उन्होंने इस नन्थ के प्रकाशन से पूर्व इसकी पाण्डुलिपि मुझे अवलोकनार्थ भिजवादी थी और मैंने कुछ संशोधन व सूचनाएँ उन्हें लिख भेजी थीं। जिनका उपयोग उन्होंने अपनी पाण्डुलिपि में कर लिया है। फिर भी कुछ बातें संशोधनोय रह गयी हैं उनकी थोड़ी-सी चर्चा कर देना यहां आवश्यक समझता हूँ। (१) पृष्ठ ६१ में ऋगवेद में 'अरिष्टनेमि' शब्द चार बार प्रयुक्त हुआ है । वह भगवान अरिष्टनेमि के लिए आया है, लिखा गया है। पर मेरी राय में वहाँ के अरिष्टनेमि शब्द का अर्थ अन्य ही होना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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