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तीर्थकर जीवन
१५५ भद्रिलपुर नामक नगर मलय में स्थित था, जहाँ के छह भ्राताओं ने दीक्षा ली थी।१४२ परिनिर्वाण : __ भगवान् अरिष्टनेमि तीन सौ वर्ष पर्यन्त कुमार अवस्था में रहे । चौपन रात्रि-दिवस छमस्थ पर्याय में रहे। सात सौ वर्षों में चौपन दिन कम केवली अवस्था में रहे। सात सौ वर्षों तक श्रमण जीवन में रहे । १४3
ग्रीष्म ऋतु के चतुर्थमास, आषाढ़ मास की शुक्ला अष्टमी के दिन, रैवतक शैल-शिखर पर अन्य पांच सौ छत्तीस अनगारों के साथ, जल रहित मासिक तप कर चित्रा नक्षत्र के योग में, मध्यरात्रि में, निषद्या में अवस्थित होकर आय कर्म, वेदनीय कर्म, नाम कर्म और गोत्र कर्म-इन चारों कर्मों को नष्टकर वे कालगत हुए, सर्वदुःखों से मुक्त हुए।१४४
१४१. विभूत्योद्धतया भूत्यै जगतां-जगतां विभूः ।
विजहार भुवं भव्यान् बोधयन् बोधदः क्रमात् ।। सुराष्ट्रमत्स्यलाटोरुसूरसेनपटच्चरान् .. कुरुजाङ्गलपाञ्चालकुशाग्नमगधाञ्जरान् ॥ अंगवङ्गकलिङ्गादीन्नानाजनपदान् जिनः । विहरन् जिनधर्मस्थांश्चक्रे क्षत्रियपूर्वकाम् ॥
-हरिवंशपुराण ५६।१०६-१११ १४२. ततो मलयनामानं देशमागत्य स क्रमात् । सहस्राम्रवने तस्यौ पुरे भद्रिलपूर्वके ।
-हरिवंशपुराण ५६।११२ १४३. कौमारे त्रिवर्षशती छद्मकेवलयोः पुनः । सप्तवर्षशतीत्यब्दसहस्रायुः शिवासुतः ॥
-त्रिषष्टि ० ८।१२।११५, पृ० १६३ १४४. (क) कल्पसूत्र सूत्र १६८ (ख) ततः प्रपेदेऽनशनं पादपोपगमं प्रभुः ।
मासिकं सह साधूनां षट्त्रिंशः पंचभिः शतैः ।।
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