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तीर्थंकर जीवन
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शिष्यों के साथ, व आर्या सुव्रता को अनेक श्रमणियों के साथ पाण्डु मथुरा प्रेषित किया | १०१ धर्मघोष स्थविर चार ज्ञान के धारक एवं प्रबल प्रतिभा के धनी थे । धर्मघोष के उपदेश को सुनकर, ज्ञातासूत्र के अनुसार, अपने पुत्र पण्डुसेन को राज्य देकर १०३ और त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र के अनुसार जराकुमार को राज्य देकर १०३ पाण्डवों ने धर्मघोष अनगार के पास और द्रौपदी ने आर्या सुव्रता के पास प्रव्रज्या ग्रहण की । १०४ पाण्डवों ने बारह अंगों का व द्रौपदी ने ग्यारह अंगों का गंभीर अध्ययन किया, और उत्कृष्ट तपजप की साधना करने लगे । १०५
उस समय भगवान् अरिष्टनेमि सौराष्ट्र जनपद में विचरण कर रहे थे । १०६ युधिष्ठिर आदि पांचों पाण्डव मुनियों के मन में भगवान् के दर्शन करने की तीव्र भावना उत्पन्न हुई। उन्होंने धर्मघोष स्थविर की आज्ञा लेकर सौराष्ट्र जन पद की ओर विहार किया । १०७
६६. वहीं ० ६३।६१-६८, पृ० ७७६-७७७
१००. पाण्डवपुराण, पर्व २२, श्लोक ८७ -६६, पृ० ४६८-४६६
१०१. ज्ञातासूत्र में भगवान के द्वारा प्रेषित करने का उल्लेख नहीं है, पर त्रिषष्टि० आदि में है
तान् प्रविवजिषूञ्ज्ञात्वा श्रीनेमिः प्राहिणोन्मुनिम् । धर्मघोषं मुनिपञ्चशतीयुतम् ॥
चतुर्ज्ञानं
- त्रिषष्टि० ८।१२/२
१०२. तए णं ते पंच पंडवा पंडुसेणस्स अभिसेओ जाव राया जाए, जाव रज्जं पासाहेमाणे विहरइ ।
१०३. जारेयं न्यस्य ते राज्ये द्रौपद्यादिसमन्विता ।
१०७. वहीं० १।१६।१३५
१०
१०४. ज्ञाता सूत्र १।१६, सूत्र १३३ - १३४, सुत्तागमे १०५. वहीं० १।१६।१३३-१३४ १०६. अरहा अरिट्ठनेमी सुरट्ठाजणवए जाव विहरइ "
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— ज्ञातासूत्र १।१
- त्रिषष्टि० पर्व ८, सर्ग १२, श्लोक ६३
— ज्ञातासूत्र १।१६।१३५
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