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________________ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण आज वन्दन करने में हुआ है। कृपया फरमाइये कि वन्दन करने का मुझे क्या फल हुआ ?८ भगवान् ने कहा- कृष्ण ! तुमने भाव-वन्दन किया है, उसके फलस्वरूप तुम्हें क्षायिक सम्यकत्व की प्राप्ति हुई है साथ ही तीर्थंकर गोत्र की शुभ प्रकृति का बन्धन किया है। इतना ही नहीं, तुमने सातवीं, छठ्ठी पाँचवीं, और चौथी नरक का बंधन भी तोड़ दिया है। किन्तु वीरक ने तुम्हारे देखा देखी ही भावशून्य वन्दन किया है। तुम्हें प्रसन्न करना ही इसका उद्देश्य रहा है, अतः इसका वन्दन कायक्लेश मात्र हुआ है । शाम्ब और पालक : शाम्ब और पालक श्रीकृष्ण के पुत्र थे। दोनों की प्रकृति में दिन रात का अन्तर था। शाम्ब जहाँ दयालु, धर्मात्मा, और उदार प्रकृति का धनी था वहां पालक, लोभी, दुराग्रही, और अभव्य प्रकृति का स्वामी था । भगवान् अरिष्टनेमि द्वारवती नगरी के बाहर पधारे हुए थे । प्रसंगवश श्रीकृष्ण ने कहा-जो कल प्रातःकाल सर्वप्रथम भगवान् अरिष्टनेमि को वन्दन करेगा, वह जो भी मांगेगा मैं उसे ८८. अन्यदा सर्वसाधूनां द्वादशावर्तवन्दनम् । कृष्णो ददौ नृपास्त्वन्ये निर्वीर्यास्त्ववतास्थिरे ॥२४०। सर्वेषामपि साधूनां वासुदेवानुवर्तनात् । तत्पृष्ठतो वीरकोऽदाद्वादशावर्तवन्दनम् ॥२४॥ बभाषे स्वामिनं कृण्णः षष्टयग्रत्रिशताहवैः । न तथा हं परिश्रान्तो वन्दनेनामुना यथा ।।२४२। ८६. सर्वज्ञोऽप्यवदत् कृष्ण ! बह्वद्य भवताजितम् । पुण्यं क्षायिकसम्यक्त्वं तीर्थकृन्नाम कर्म च ॥२४३। उद्धृत्य सप्तमावन्यास्तृतीयनरकोचितम् ।।२४४। -त्रिषष्टि० ८।१० ६०. (क) वीरकस्य फलं कृष्णेनानुयुक्तोऽवदत् प्रभुः । फलमस्य वपुः क्लेशस्त्वच्छन्दाद्वन्दते ह्यसौः ।। -त्रिषष्टि ० ८।१०।२४७ (ख) आवश्यक चूर्णि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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