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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण ___ भगवान् की विमल-वाणी को सुनकर श्रीकृष्ण ने कहा तब तो मैं भी वर्षाऋतु में दिग्विजय यात्रा नहीं करूंगा और न सभा का आयोजन ही करूंगा। तब से श्रीकृष्ण ने वर्षाऋतु में सभा का आयोजन और दिग्विजययात्रा बन्द करदी ।८3 स्वामिनी बनोगी या दासी :
एकदिन श्रीकृष्ण ने अरिष्टनेमि के सामने यह प्रतिज्ञा ग्रहण की कि भगवन् मैं स्वयं तो आपके पास दोक्षा नहीं ले सकता, पर जो भी दोक्षा लेंगे उनका मैं सदा अनुमोदन करूगा । दीक्षा लेने वाले को त्याग-वैराग्य की प्रेरणा दूंगा ! उनका अपने पुत्रों की तरह निष्क्रमण महोत्सव करूंगा।८४
श्रीकृष्ण राजमहल में पहुँचे । उनकी लड़कियाँ उन्हें नमस्कार करने आई।
उन में जो विवाह के योग्य हो गई थीं श्रीकृष्ण ने उनसे अत्यन्त स्नेह के साथ पूछा-पुत्रियो ! तुम स्वामिनी बनकर जीना पसन्द करती हो या दासी बनकर जीना चाहती हो ?८५
स्वभावतः सभी ने एक स्वर से स्वामिनी बनने की बात कही।
८२. स्वामी बभाषे वर्षासु नानाजीवाकुला मही।
जीवाभयप्रदास्तत्र सञ्चरन्ति न साधवः ।। ८३. कृष्णोऽप्युवाच यद्य वं गच्छदागता मया ।
भूयाज्जीवक्षयो भूयः परिवारेण जायते ॥२०३। तद्वर्षासु बहिर्गेहान्निःसरिष्यामि न ह्यहम् । अभिगृह्य ति गत्वा च कृष्णो वेश्माविशन्निजम्॥२०४। कस्यापि प्रावृषं यावत् प्रवेशो मम वेश्मनि । न प्रदेय इति द्वाःस्थानादिदेश च शाङ्ग भृत् ॥२०५।
–त्रिषष्टि० ८।१० ८४. प्रव्रजिष्यति यः कश्चिद्वारयिष्याम्यहं न तम् ।
पुत्रस्येव करिष्ये च तस्य निष्क्रमणोत्सवम् ॥२१३। ८५, अभिगृह्य त्यगाद्विष्णुविवाह्या नन्तुमागताः । ऊचे स्वकन्याः स्वामिन्यो दास्यः किं वा भविष्यथा ॥२१४।
-त्रिषष्टि० ८।१०
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