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तीर्थंकर जीवन
भगवान् ने कहा—जैसा तुम्हें सुख हो वैसा करो।
उसके पश्चात् पद्मावती देवी उत्तर पूर्व दिशा की ओर चली गई। उसने अपने आभूषण और अलंकार उतारे और स्वयं पञ्चमुष्टि लोच किया । पश्चात् अरिष्टनेमि के पास आकर विधिपूर्वक वन्दन नमस्कार कर बोली- हे भगवन् ! यह संसार जन्म, जरा, मरण आदि दुःख रूपी अग्नि से प्रज्वलित हो रहा है । मैं उस दुःख से मुक्त होने के लिए आपके निकट प्रवज्या ग्रहण करना चाहती हूँ। ___अर्हत् अरिष्टनेमि ने पद्मावती को स्वयं प्रव्रज्या दी और उसे यक्षिणी आर्या को शिष्या के रूप में प्रदान की। पद्मावती ने यक्षिणी आर्या के पास ग्यारह अंगों का अध्ययन किया । उपवास से लेकर मासिक उपवास तक उत्कृष्ट तप का आचरण करती हुई, एक मासिक संलेखना कर अन्त में सिद्ध बुद्ध और मुक्त हुई।६६
उसके पश्चात् द्वारवती के बाहर जब भगवान् नन्दनवन में समवसत हुए तब श्रीकृष्ण की अन्य रानियां गौरी,६७ गांधारी,६८ लक्ष्मणा,६९ सुसीमा, जाम्बवती, सत्यभामा.७२ और रुक्मिणी ने भी भगवान् के उपदेश को सुन, श्रीकृष्ण की आज्ञा ले संयम मार्ग ग्रहण किया और मुक्ति प्राप्त की। ___ उसके बाद पुनः भगवान् अरिष्टनेमि किसी समय द्वारवती पधारे । नन्दनवन में विराजे । तब सांबकुमार की पत्नी मूलश्री ४ और मूलदत्ता ५ ने प्रव्रज्या ग्रहण की और मुक्त हुई।
६५. एस णं भन्ते ! मम अग्गमहिसी पउमावई नामं देवी इट्ठा कंता
पिया मणुण्णा मणामा अभिरामा जीविय ऊसासा हिययाणंदजणिया उवरपुप्फविव दुल्लहा सवणयाए किमंग पुण पासणयाए ? तण्णं अहं देवाणुप्पियाणं ! सिस्सिणी भिक्खं दलयामि ।।
-~~ अन्तकृतदशा वर्ग ५, अ० १ ६६. अन्तकृतदशा वर्ग ५, अ० १ ६७. अन्तकृतदशा वर्ग ५, अ० २ ६८. वहीं० अ० ३ ६६. वहीं० अ० ४
७०. वहीं० अ० ५ ७१. वहीं० अ०६
७२. वहीं० अ० ७ ७३. वहीं० अ०८
७४. वहीं० अ०६ ७५. वहीं० अ० १०
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