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तीर्थंकर जीवन
१२१ अक्षोभ, प्रसेन और विष्णु आदि ने भी अरिष्टनेमि के पास दीक्षा ग्रहण की, और गौतम की भाँति संयम का आराधन कर मुक्त हुए थे। इन सभी के पिता अंधकवृष्णि थे और माता धारिणी थी।
एकबार भगवान् जब पुनः द्वारिका पधारे तब वृष्णि के पुत्र और धारिणी के आत्मज अक्षोभ, सागर, हिमवन्त, अचल, धरण, पूरण, और अभिचन्द्र ने दीक्षा ली। इन सभी ने गुणरत्न संवत्सर नामक तपःकर्म का आचरण किया। सोलह वर्ष तक उत्कृष्ट चारित्र का पालन करने के पश्चात् एक मास की संलेखना कर शत्र जय पर्वत पर आयु पूर्ण कर ये सिद्ध बुद्ध और मुक्त हए। ४ ।।
फिर एक समय भगवान द्वारवती पधारे। उस समय वासुदेव के पुत्र और महारानी धारणी के अंगजात सारणकुमार ने पचास भार्याओं को त्याग कर प्रव्रज्या ग्रहण की। स्थविरों के पास चौदह पूर्वो का अभ्यास किया । बीस वर्ष तक संयम धर्म का पालन कर अन्त में एक मास की संलेखना कर शत्र जय पर्वत पर मुक्ति प्राप्त की।५५
भगवान् एक बार पुनः द्वारवती पधारे। तब बलदेव राजा और धारिणी देवी के पुत्र सुमखकुमार ने पचास पत्नियों को त्यागकर दीक्षा ली। चौदह पूर्वो का अभ्यास किया। बीस वर्ष तक संयम साधना, एवं तप आराधना कर शत्रुञ्जय पर्वत पर सिद्धि प्राप्त की। उसी समय बलदेव और धारिणी के पुत्र दुर्मुख और कूप ने, तथा वासुदेव धारिणी के पुत्र दारुक व अनादृष्टि ने दीक्षा ली और उत्कृष्ट साधना कर मुक्ति प्राप्त की।५६
किसी समय पुनः भगवान् द्वारिका पधारे । उस समय वसदेव और धारिणी के पुत्र जालिकुमार, मयालिकुमार, उपजालिकुमार, पुरुषसेन और वारिषेण तथा श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के पुत्र प्रद्युम्न, कृष्ण और जाम्बवती के पुत्र साम्बकुमार, प्रद्य म्न और वैदर्भी के पुत्र अनिरुद्ध और समुद्रविजय व शिवादेवी के पुत्र सत्यनेमि और दृढ़नेमि ने दीक्षा ली थी।५७
५४. अन्तकृतदशा वर्ग २, अ० १ से - ५५. अन्तकृतदशा वर्ग ३, अ० ७ ५६. अन्तकृतदशा वर्ग ३, अ० ६-१३
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