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तीर्थकर जीवन
साध्वी राजीमती के सुभाषित वचन सुनकर जैसे हस्ती अंकुश से वश में आता है वैसे ही रथनेमि का मन स्थिर हो गया ।४६
रथनेमि ने भगवान् के पास जाकर आलोचना की। वे उत्कृष्ट तप तपकर मोक्ष गये। राजीमती भी केवली हुई, फिर कर्मों को नष्ट कर मुक्त हुई ।४७ देवकी की शंका : भगवान् का समाधान : . ____ एक बार भगवान् अरिष्टनेमि अपने शिष्य समुदाय सहित विहार करते हुए द्वारावती नगरी के सहस्राम्रवन में पधारे। उस समय भगवान् के साथ अनीकयशा, अनन्तसेन अजितसेन, निहतशत्रु देवयशा और शत्र सेन ये छह अन्तेवासी अनगार भी थे। वे सहोदर भाई थे । रूप और वय में वे सभी समान प्रतीत होते थे। उन सभी के शरीर का रंग नीलोत्पल एवं अलसीपुष्प के समान था। उनके वक्षस्थल पर वत्स का लक्षण था। उनकी सौन्दर्य-सुषमा नल कुबेर से भी बढ़कर थी। जिस दिन उन्होंने प्रव्रज्या ग्रहण की थी उसी दिन उन्होंने भगवान के सामने यावज्जीवन षष्ठ भक्त तप करने को भीषण प्रतिज्ञा ग्रहण की थी।
एकबार उन्होंने षष्ठभक्त के पारणे के दिन भगवान् श्रीअरिष्टनेमि की आज्ञा ग्रहण कर तीन मंघाटक बना भिक्षा के लिए द्वारिका में प्रवेश किया। एक संघाटक भिक्षा के लिए परिभ्रमण करता हुआ वसुदेव की रानी देवकी के महल में आया । मुनियों को निहार कर देवको रानी अत्यधिक प्रसन्न हई। वह अपने आसन से उठकर सात-आठ कदम सामने गई । मुनियों को तीन बार वन्दननमस्कार किया, पश्चात् भोजन गृह में जाकर उदार भावना से मुनियों को सिंह केसरिया मोदक बहराये । मुनि मोदक लेकर चले गये। कुछ समय के पश्चात् दूसरे संघाटक ने प्रवेश किया । देवकी ने पूर्ववत् ही सत्कार सन्मान कर आहारदान दिया। कुछ समय के पश्चात् तीसरे संघाटक ने भी उसी तरह प्रवेश किया। देवकी ने
४६. उत्तराध्ययन २२१४६ ४७. वहीं० २२।४८
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