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________________ जन्म एवं विवाह प्रसंग ३ है कि आचार्य शीलाङ्क ने चउप्पन्नमहापुरिसचरियं में तोरण से लौटने के पूर्व ही वर्षीदान का उल्लेख किया है जो अन्य आचार्यों के वर्णन से मेल नहीं खाता है ।८९ तर्क संगत भी कम है। हमारी अपनी दृष्टि से भी वर्षीदान विवाह से लौटने के बाद ही दिया होगा । उधर राजीमती की सखियों ने राजीमती के आंसू पोंछते हुए कहा-'राजूल ! वस्तुतः तुम बहत भोली हो, जो तुम्हें चाहता नहीं उसके लिए म आंसू बहा रही हो। जिसके पास नारी के कोमल हृदय को परखने का दिल नहीं, उसकी दारुण वेदना को समझने का हृदय नहीं, तुम उसके लिए अपना दिल लुटा रही हो । अरिष्ट नेमी कायर थे, वे गृहस्थाश्रम की जिम्मेदारियां निभाने से कतराते थे, इस कारण जीवदया का बहाना बनाकर विना विवाह किये ही भाग गये।' - "हट जा यहाँ से, मुह से थूक दे । अरिष्टनेमि जैसे दयालु और वीर पुरुष को तू कायर कह रही है ! वह कैसे करुणावतार थे, जिन्हें मूक पशुओं की करुण पुकार सुनकर अपने जीवन का समस्त सुख निछावर कर दिया ! उनकी महान् करुणा को तू बहाना कह रही है, तुझे लज्जा नहीं आती ?' अरिष्टनेमि की स्मृति में खोई राजमती ने सखी को डांट कर दूर कर दिया। ___'जिसने मूक पशुओं की पुकार सूनी, किन्तु एक अबला नारी की पुकार नहीं सुनी, क्या वह करुणाशील कहा जा सकता है ? उसने (ख) ददौ च वार्षिकं दानं, निनिदानं जगद्गुरुः । दीक्षाभिषेकं चक्रुश्च शक्राद्या नाकिनायकाः ॥ -त्रिषष्टि० ८।६।२३८ (ग) एगा हिरण्णकोडी अट्ठव अणूणगा सयसहस्सा । वियरिज्जइ कणयं पइदिणंपि लोयाण य जहिच्छं ।। तिन्नेव य कोडिसया अट्ठासीइ च होंति कोडीओ। असियं च सयसहस्सा एवं संवच्छरे दिन्नं ॥ तत्तो दिक्खासमयं आसणकंपेण सयलदेविन्दा । नाउ नेमिजिणिदस्स आगया सयलरिद्धीए । -भव-भावना, ३५४०-४१-४२, पृ० २४२ ८६. चउप्पन्नमहापुरिसचरियं, पृ० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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