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राजस्थान के प्राकृत साहित्यकार : ३
- देवेन्द्र मुनि शास्त्री
आचार्य हरिभद्र
हरिभद्रसूरि राजस्थान के एक ज्योतिर्धर नक्षत्र थे। उनकी प्रबल प्रतिभा से भारतीय साहित्य जगमगा रहा है। उनके जीवन के सम्बन्ध में सर्वप्रथम उल्लेख " कहावली" में प्राप्त होता है । इतिहासविज्ञ उसे विक्रम की बारहवीं शती के आसपास की रचना मानते हैं । उसमें हरिभद्र की जन्म-स्थली के सम्बन्ध में "पिबंगुई बंभपुणी " ऐसा वाक्य मिलता है, जबकि अन्य अनेक स्थलों पर चित्तौड़- चित्रकूट का स्पष्ट उल्लेख है । पण्डित प्रवर श्री सुखलालजी का अभिमत है कि बम्भपुणी ब्रह्मपुरी चित्तौड का ही एक विभाग रहा होगा, अथवा चित्तौड़ के सन्निकट का कोई कस्बा होगा । उनके माता का नाम गंगा और पिता का नाम शंकरभट्ट था । सुमतिगणी न् “गणवर सार्वशतक" में हरिभद्र को जाति ब्राह्मण बताई है । प्रभावक चरित्र में उन्हें पुरोहित कहा गया है ।"
आचार्य हरिभद्र के समय के सम्बन्ध में विद्वानों में विभिन्न मत थे । किन्तु पुरातत्ववेत्ता मुनि श्री जिनविजय जी ने प्रबल प्रमाणों से यह सिद्ध कर दिया कि वीर सं. 757 से 827 तक उनका जीवन काल है । अब इस सम्बन्ध में किसी भी प्रकार का मतभेद नहीं रहा है। उन्होंने व्याकरण, न्याय, दर्शन और धर्मशास्त्र का गम्भीर अध्ययन कहां पर किया था इसका उल्लेख
1. पाटण संघवी के पाड़े के जैन भण्डार की वि. सं. 1497 की लिखित ताडपत्रीय पोथी खण्ड 2, पत्र 300 1
2.
(क) उपदेश पद, श्री मुनिचन्द्रसूरि की टीका वि. सं. 1174 |
(ख) गणघर सार्घशतक श्री सुमतिगणि कृत वत्ति ।
(ग) प्रभावक चरित्र 9 श्रृंग (वि. सं.
1334)
(घ) राजशेखर कृत प्रबन्धकोष वि. सं. 1405, पृ.601
3. समदर्शी आचार्य हरिभद्र, पु. 6 ।
4. संकरो नाम भटो, तस्स गंगा नाम भट्टिणी । तीस हरिभद्दो नाम पंडियो पुत्तो । काली पत्र 300 1
5. एवं सो पंडितगव्व मुव्वहमाणो हरिभद्दो नाम माहणो ।
6. प्रभावक चरित्र शुंग 9, श्लोक 8 ।
7. जंब साहित्य संशोधक वर्ष 1 अंक 11