SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्पादकीय भगवान् महावीर के 2500वें परिनिर्वाण वर्ष के उपलक्ष्य में राज्यस्तर पर गठित राजस्थान राज्य भगवान महावीर 2500वां निर्वाण महोत्सव समिति की साहित्यिक पं.जना के अन्तर्गत यह ग्रन्थ प्रकाशित किया जा रहा है। ग्रन्थ छः खण्डों में विभक्त है। प्रथम खण्ड प्राकृत साहित्य से सम्बन्धित है। इसमें चार निबन्ध हैं जो प्राकृत साहित्य की सामान्य प्रवृत्तियों और राजस्थान के प्राकृत साहित्यकारों से सम्बन्धित है। द्वितीय खण्ड संस्कृत साहित्य से सम्बन्धित है। इस खण्ड में पांच निबन्ध हैं जो संस्कृत साहित्य के विकास और प्रवृत्तियों, राजस्थान के संस्कृत साहित्यकारों तथा जैन संस्कृत महाकाव्यों से सम्बन्धित हैं। तृतीय खण्ड अपग्रंश साहित्य से सम्बन्धित है। इसमें चार निबन्ध है जो अपभ्रंश साहित्य की सामान्य पृष्टभूमि, उसके विकास,प्रवृत्तियों और साहित्यकारों से सम्बन्धित है । चतुर्थ खण्ड राजस्थानी साहित्य से सम्बन्धित है। इसमें 9 निबन्ध हैं जो राजस्थानी साहित्य की सामान्य पृष्ठभूमि और पद्य तथा गद्य क्षेत्र के साहित्यकारों से सम्बन्धित है। पंचम खण्ड हिन्दी साहित्य से सम्बन्धित है। इसमें निबन्ध हैं जो हिन्दी जैन साहित्य की सामान्य प्रवत्तियों और पद्य तथा गद्य की विविध विधाओं पर प्रकाश डालते हैं। षष्ठ खण्ड परिशिष्ट खण्ड है। इस खण्ड में लोक साहित्य, ग्रन्थभण्डार, शिलालेख और लेखनकला से सम्बन्धित लेख दिये गये हैं। अन्त में अनुक्रमणिका देकर ग्रन्थ को शोधार्थियों के लिए विशेष उपयोगी बनाने का प्रयत्न किया गया है। इस ग्रन्थ द्वारा राजस्थान में रचित प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, राजस्थानी और हिन्दी भाषा के जैन साहित्य की सामान्य प्रवृत्तियों और उससे सम्बद्ध रचनाकारों का परिचय देने का विनम्र प्रयास किया गया है। राजस्थान में रचित आधुनिक साहित्य अलग-अलग स्थानों से अलग-अलग व्यक्तियों और संस्थाओं द्वारा प्रकाशित होने से विभिन्न स्थलों पर उपलब्ध है। इस कारण अब तक प्रकाशित समग्र साहित्य का आकलन कर, उसका मूल्यांकन करना किसी एक लेखक के लिए शक्य न होने से संभव है कतिपय ग्रन्थों तथा ग्रन्थकारों का नामोल्लेख होने से रह गया हो।इस प्रकाशन द्वारा राजस्थान में प्रवाहित जैन साहित्य की बहमखी धारा से पाठकों को परिचित कराना हमारा उद्देश्य है। इसका सम्यक् मूल्यांकन तो आगे की सीढ़ी है। प्रन्थ के प्रस्तुतिकरण में हमारी समन्वयात्मक दृष्टि रही है। राजस्थान में प्रचलित जैन समाज की श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं के साहित्य और साहित्यकारों के सम्बन्ध में, परम्परा विशेष से सम्बद्ध अधिकारी विद्वानों से निवेदन कर, निबन्ध जुटाने का प्रयत्न किया गया है। निबन्धों में अभिव्यक्त विचार लेखकों के अपने हैं। उसके लिए राज्य समिति या सम्पादक मण्डल उत्तरदायी नहीं है। विद्वान संतों और लेखकों ने अत्यन्त व्यस्त रहते हुए भी हमारे निवेदन पर जिस अपनत्व के साथ अपने निबन्ध भिजवाकर सहयोग प्रदान किया उसके लिये कृतज्ञता ज्ञापित करना हम अपना परम कर्तव्य मानते हैं। राज्यस्तर पर गठित समिति के अध्यक्ष माननीय श्री हरिदेवजी जोशी, मुख्य मन्त्री, पजस्थान सरकार, समिति के उपाध्यक्ष माननीय श्री चन्दनमलजी बैद, विन मन्त्री, सजस्थान
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy