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________________ 407 उपयुक्त तालिका के अनुसार इकाई, दहाई और सैकड़ों के अंक का उपयोग इस प्रकार किया जाता था:-- . + १. फोantert० १२, , 5 H४०, ७० , १ ४५, e; (५०, bh५४ ६५८ ६५४ : g co.. ४.००.६ ७२. १७५.५.७७ ०.१८८.४.४०,४ ४७. ०४: 300, प ४७ 99." ०० ..do, से मा सोला स्ले तोर + 38. ६४७, थुEEN: ०७००, 2 ७२२, ७४७. ७७ यह ताडपत्रीय पत्रांक लेखन पद्धति कागज पर लिखे ग्रन्थों पर चली पाती थी किन्तु कई कागज की प्रतियों में इकाई, दहाई, सैकड़ों के संकेत न व्यवहृत कर केवल इकाई अक्षरांकों का भी व्यवहार हुआ है । यतः-- स्व 10, इत्यादि स्ति 20, एक 40, स्व100, स्व स्व115, 0 ल एक400, स्व स्ति 1240 एक 1 त्रिशती नामक गणित विषयक संग्रह ग्रन्थ में जैन "के" रूप में एक से दस हजार तक के अक्षरांक लिखे हैं। उपयुक्त तालिका में पाये हुए एक से तीन सौ तक के अंकों के पश्चात् अधिक की तालिका यहां दी जाती है : "स्तू 400, स्ते 500, रते 600, स्ता 700, स्तिो 800, स्तं 900,स्त: 1000, क्षु 2001 क्ष 3000,क्षा 4000, क्ष 5000, पक्ष 6000, क्षिा 7000, क्षो 8000,क्ष9000, क्षः10001
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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