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________________ 403 जिनचन्द्रसूरि, समयसुन्दरोपाध्याय, गुणविनयोपाध्याय, यशोविजय उपाध्याय, विनयविजय, नयविजय, कोतिविजय, जिनहर्षगणि, क्षमाकल्याणोपाध्याय, ज्ञानसार गणि आदि बहसंख्यक विद्वानों के स्वयं हस्तलिखित ग्रन्थ उपलब्ध हैं। जैन यति-मुनियों, साध्वियों आदि के अतिरिक्त श्रीमन्त श्रावकों द्वारा लहिया लोगों से लिखवाई हुई बहुत सी प्रतियां हैं। इस प्रकार जैन ज्ञान भण्डारों में लाखों प्राचीन ग्रन्थ अाज भी विद्यमान हैं। पुस्तकों के लिपिक लहिए कायस्थ, ब्राह्मण, नागर, महात्मा, भोजक आदि जाति के होते थे, जिनका पेशा ही लिखने का था और उन सैकड़ों परिवारों की आजीविका जैनाचार्यों व जैन श्रीमन्तों के आश्रय से चलती थी। वे जैन लिपि व लेखन पद्धति के परम्परागत अभिज्ञ थे और जैन लहिया-जैन लेखक कहलाने में अपना गौरव समझते थे। महाराजा श्रीहर्ष, सिद्धराज जयसिंह, राजा भोज, महाराणा कुम्भा आदि विद्याविलासी नरेश्वरों को छोड़ कर एक जैन जाति ही ऐसी थी जिसके एक-एक व्यक्ति ने ज्ञान भण्डारों के लिए लाखों रुपये लगा कर अद्वितीय ज्ञानोपासना-श्रतभक्ति की है। लाखों ग्रन्थों के नष्ट हो जाने व विदेश चले जाने पर भी आज जो ग्रन्थ भण्डार जैनों के पास हैं वे बड़े गौरव की वस्तु है। ज्ञान पंचमी का पाराधन एवं सात क्षेत्रों में तथा स्वतन्त्र ज्ञान द्रव्य की मान्यता से इस ओर पर्याप्त ज्ञान सेवा समद्ध हई। साध- यतिजनों को स्वाध्याय करना अनिवार्य है। श्रुत-लेखन स्वाध्याय है और इसीलिए इतने ग्रन्थ मिलते हैं। आज मुद्रण युग में भी सुन्दर लिपि में ग्रन्थ लिखवा कर रखने की परिपाटी कितने ही जैनाचार्य मुनिगण निभाते पा रहे हैं। तेरापन्थी श्रमणों में आज भी लेखन कला उन्नत देखी जाती है क्योंकि उनमें हस्तलिखित ग्रन्थ लिखने और वर्ष में अमक परिमाण में लेखन-स्वाध्याय की पूर्ति करना अनिवार्य है। लेखक के गुण-दोष : लेख पद्धति के अनसार लेखक सुन्दर अक्षर लिखने वाला, अनेक लिपियों का अभिज्ञ, शास्त्रज्ञ और मर्वभाषा विशारद होना चाहिए, ताकि वह ग्रन्थ को शुद्ध अविकल लिख सके । मेधावी, वाक्पट, धैर्यवान्, जितेन्द्रिय, अव्यसनी, स्वपरशास्त्रज्ञ और हलके हाथ से लिखने वाला सुलेखक है। जो लेखक स्याही गिरा देता हो, लेखनी तोड़ देता हो, आमपास की जमीन बिगाड़ता हो. दवात में कलम इबोते समय उसकी नोक तोड़ देता हो वह अपलक्षणी और कूट लेखक बतलाया गया है। लेखक की साधन समग्री: ग्रन्थ लेखन के हेतु पीतल के कलमदान और एक विशिष्ट प्रकार के लकड़ी या कटे के कलमदानों-लेखन मामनी का संग्रह रहता था। हमारे संग्रह में ऐसा एक गचित्र कटे का कलमदान है जिस पर दक्षिणी गोली से सुन्दर कृष्णलीला का चित्रांकन किया हया है। एक मादे कलमदाल में पुरानी लेखन मामग्री का भी संग्रह है। यह लेखन सामग्री विविध प्रकार की होती थी जिसका वर्णन ऊपर किया जा च का है। एक श्लोक में 'क' अक्षर वाली 17 बयों की सूची. उल्लिखित है:-- कंपी (दवात), (2) काजल (माही). (3) के (मिर के बाल या रेशम), (4) ऋग-दर्भ, (5) कम्बल, (6) कांबी, ( कलम, (3) कृपाणिका, (क). !) कतारनी (कैची), (10) काठपदिका, (11) नागज, (12) का-यांख, (13) कोटड़ी (कम), (14) कलमदान, (15) माण-पैर, (16) कटि-कमर, प्रौर (17) कंकड़ ।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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