SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 429
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 374 श्री महावीर क्षेत्र के साहित्य शोध विभाग की ओर से राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रन्थ सूचियों के पांच भाग प्रकाशित हो चुके हैं । जिनमें करीब पचास हजार प्रतियों का परिचय दिया हुआ है । इन ग्रन्थ सूचियों से सैकड़ों अज्ञात ग्रन्थों का परिचय विद्वानों को प्रथम बार प्राप्त हुआ है । स्व. डा. वासुदेवशरण अग्रवाल ने ग्रन्थ सूची चतुर्थ भाग की भूमिका में लिखा है कि " -- विकास की उन पिछली शतियों में हिन्दी साहित्य के कितने विविध साहित्य रूप थे, यह भी अनुसंधान के लिए महत्वपूर्ण विषय है । इस सूची को देखते हुए उनमें से अनेक नाम सामने आते हैं जैसे, स्तोत्र, पाठ, संग्रह, कथा, रासो, रास, पूजा, मंगल, जयमाल, प्रश्नोत्तरी, मन्त्र, अष्टक, सार, समुच्चय, वर्णन, सुभाषित, चौपई, शुभमालिका, निशाणी, जकड़ी, व्याहलो, बधावा, विनती, पत्नी, भारती, बोल, चरचा, विचार, बात, गीत, लीला, चरित्र, छन्द, छहप्पय, भावना, विनोद, कल्प, नाटक, प्रशस्ति, धमाल, चोढालिया, चौमासिया, वारामासा, बटोई, वेलि, हिंडोलणा, चुनड़ी, सज्झाय, बाराखड़ी, भक्ति, वन्दना, पच्चीसी, बत्तीसी, पचासा, बावनी, सतसई, सामायिक, सहस्त्रनाम, नामावली, गुरुवावली, स्तवन, सम्बोधन, मोडल आदि । इन विविध साहित्य रूपों में से किसका कब आरम्भ हुआ और किस प्रकार विकास और विस्तार हुआ यह शोध के लिए रोचक विषय है । उसकी बहुमूल्य सामग्री इन भण्डारों में सुरक्षित है ।" इसी तरह जयपुर के प्राचार्य विनयचन्द्र ज्ञान भण्डार, लाल भवन की ओर से ग्रन्थ सूची का एक भाग डा. नरेन्द्र भानावत के सम्पादन में अभी कुछ वर्ष पूर्व प्रकाशित हो चुका है। इन ग्रन्थ सूचियों ने देश के प्राच्यविद्या पर कार्य करने वाले विद्वानों का ध्यान आकृष्ट किया है और देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में अब कितने ही रिसर्च विद्यार्थियों द्वारा शोध कार्य किया जा रहा है जो एक शुभ सूचना है और जिससे इन भण्डारों में सैकड़ों वर्षों से संग्रहीत ग्रन्थों का उपयोग होना प्रारम्भ हो गया है । राजस्थान के सभी शास्त्र भण्डारों का परिचय देना सम्भव नहीं है इसलिए प्रदेश के कुछ प्रमुख शास्त्र भण्डारों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है । " (1) बृहद ज्ञान भण्डार, जैसलमेर : विश्व के ग्रन्थ भण्डारों में जैसलमेर के इस ज्ञान भण्डार को सर्वाधिक प्रसिद्धि प्राप्त है । प्राचार्य जिनभद्रसूरि ने इसे संवत् 1497 (1440 ए. डी. ) में संभवनाथ मन्दिर में स्थापित किया था । यह ज्ञान भण्डार कितने ही आचार्यों एवं विद्वानों की साहित्यिक गतिविधियों का केन्द्र रहा। इनमें कमलसंयम उपाध्याय (1487 ए. डी. ) एवं समयसुन्दर ( 17 वीं शताब्दि ) के नाम उल्लेखनीय हैं । कर्नल जेम्सटाड, डा. व्हूलर, डा. जेकोबी जैसे पाश्चात्य विद्वानों ने तथा मुनि हंसविजयजी, सी. डी. दलाल, मुनि पुण्यविजय जैसे भारतीय विद्वानों ने इस शास्त्र भण्डार का अवलोकन किया था । श्री सी. डी. दलाल, पं. लालचन्द्र, म. गांधी एवं मुनि पुण्यविजयजी ने तो अपने इस भण्डार की ग्रन्थ सूची तैयार की जो प्रकाशित भी की जा चुकी है। इस भण्डार में ताड़ - पत्रों पर लिखे हुए ग्रन्थों की संख्या 804 है जिनमें सर्वतोलेख वाली प्रौधनियुक्ति वृत्ति की पाण्डुलिपि सबसे प्राचीन है जो सन् 1060 की लिखी हुई है। वैसे विशेषावश्यक भाष्य की प्रति 10 वीं शताब्दी की है । • इसके अतिरिक्त 12 वीं और 13 वीं शताब्दी में लिखे हुए ग्रन्थों की संख्या काफी अच्छी है । जैनाचार्यों द्वारा निबद्ध ग्रन्थों के अतिरिक्त यहां जैनेतर विद्वानों की कृतियों की भी प्राचीनतम पाण्डुलिपियां संग्रहीत । ऐसी पाण्डुलिपियों में कुवलयमाला, काव्य मीमांसा ( राज शेखर) काव्यादर्श ( सोमेश्वर भट्ट) काव्य प्रकाश (मम्मट) एवं श्री हर्ष का नैषधचरित के नाम उल्लेखनीय हैं । इसी भण्डार में विमलसूरि के पउमचरिय ( 1141 ),
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy