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________________ 358 कभी कहानियां भी लिखते थे । पंडितजी के गद्य का एक नमूना इस प्रकार है: __ "क्षमा हमें विवेक देती है और प्रत्येक विषय पर गहराई से विचार करने का अवकाश प्रदान करती है। क्षमा को ठीक समझने के लिए हमें उसके दो भेद करने होंगे। एक साधु की तथा दूसरी गहस्थ की। साधु की क्षमा प्रतिकार रहित होती है जब कि गहस्थ की क्षमा आतताइयों का प्रतिकार करती है। क्षमा मनुष्य को अकर्मण्यता का पाठ नहीं पढ़ाती, वह तो मनष्य को काम करना सिखाती है और प्राध्यात्मिक योगी को आत्म-समर्पण की शिक्षा देकर मुक्ति की राह बतलाती है।" पंडितजी इस शताब्दि के अच्छे हिन्दी गद्य लेखक माने जाते हैं । 2. श्री श्रीप्रकाश शास्त्री:--आपका जन्म सं. 1972 में जयपुर में हुआ। आपके पिता श्री बालचन्द जी सोनी थे। आपने सन 1934 में न्यायतीर्थ. 1935 में शास्त्री व 1936 में काव्यतीर्थ की परीक्षा पास की। सन् 1933 से ही आपके लेख जैन पत्र-पत्रिकाओं में छपने लग गए थे। पाप दर्शन व प्राध्यात्मक परक लेख लिखने में विशेष रुचि लेते थे। पंडितजी प्राचीन साहित्य के प्रसिद्ध विद्वान थे और हिन्दी जैन साहित्य पर आपके कितने ही लेख वीरवाणी में प्रकाशित होते रहते थे। अापने पं. चैनसुखदास जी के संस्कृत ग्रन्थ 'निक्षेपचक्र' का हिन्दी अनुवाद किया था। वीरवाणी में आपने ‘जयपुर राज्य के दिगम्बर जैन साहित्यकार लेख माला के माध्यम से सारे साहित्यकारों का पूर्ण परिचय प्रस्तुत किया । आपने सूर्यसागर ग्रन्थमाला द्वारा प्रकाशित तथा प्राचार्य सूर्यसागर जी द्वारा लिखित 'संयम प्रकाश' ग्रन्थ का संपादन किया था। आप महान साहित्यसेवी थे। आपका असमय में निधन होने से साहित्य जगत को गहरी क्षति पहुंची है । 3. पण्डित इन्द्रलाल शास्त्री:--आपका जन्म 21-9-1897 को जयपुर में हुआ। आप मुंशी मालीलाल जी चांदवाड़ के पुत्र थे । आपने सं. 1972 में शास्त्री की परीक्षा उत्तीर्ण की। प्रापका अध्ययन गहन एवं विद्वत्ता अगाध थी। हिन्दी पद्य के समान हिन्दी गद्य के भी शास्त्री जी अच्छे लेखक थे। खण्डेलवाल जैन हितेच्छ, अहिंसा जैसे पत्रों के सम्पादक रह कर हिन्दी गद्य साहित्य की अच्छी सेवा की थी। अापकी निम्न रचनायें इस प्रकार हैं:--धर्म सोपान, तत्वालोक, आत्म वैभव, पशुबध सबसे बड़ा देशद्रोह, शांति पीयूषधारा, अहिंसा तत्व, विवेक मंजूषा, दिगम्बर जैन साधु को चर्या, जैन धर्म और जाति भेद, महावीर देशना, भारतीय संस्कृति का महारूप आदि । आप अपने समय के अच्छे वक्ता, लेखक, कवि तथा अनेक पत्रों के सम्पादक रहे हैं। 4. पं. मिलापचन्द शास्त्रीः--आपका जन्म जयपुर राज्य के प्रतापपुरा ग्राम में वि. स. 1971 में हुअा था किन्तु कुछ समय बाद आप जयपुर में श्री मगनलाल जी पहाड़िया के यहां गोद पा गए। यहां पाने के पश्चात आपने शास्त्री व न्यायतीर्थ की परीक्षाएं उत्तीर्ण की। आपकी प्रवचन शैली और लेखन शैली दोनों ही मंजी हई है। आपने 'पावन-प्रवाह' एवं 'जैन दर्शनसार' पर सून्दर हिन्दी गद्य टीकाएं लिखी है। समय-समय पर आपके लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहते हैं। 5. डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल :---डा. कासलीवाल का जन्म दिनांक 8 अगस्त, 1920 को जयपर जिलान्तर्गत सैथल ग्राम में हमा। अापके पिताजी श्री गैदीलालजी ग्राम के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से थे। ग्राम में प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद आप अपने छोटे भाई के साथ जयपुर में पं. चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ के संरक्षण में पाए और यहीं एम. ए. तथा
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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