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4. जन जन के बीच-भाग-1-मुनि सुखलाल:--प्रस्तुत पुस्तक में आचार्य श्री तुलसी की यात्रा का वर्णन संकलित है।
5. जन जन के बीच-भाग-2--मुनि सुखलाल:-इस पुस्तक में प्राचार्य श्री की विद्युत्वेग यात्रा में बंगाल विहार से वापस आते उत्तर प्रदेश, पंजाब तथा राजस्थान की यात्रा क आचार्य श्री के जीवन प्रसंग, स्थानीय लोगों की मनोवृत्ति, प्राकृतिक चित्रण, इतिहास और यात्रा में घटने वाली घटनाओं का सूक्ष्म दृष्टि से विश्लेषण किया गया है।
6. बढते चरण--मुनि श्री चन्द्र:-बंगाल से राजस्थान की ओर आते हुए आचार्य श्री तुलसी की विद्युत्वेग यात्रा के 40 दिन (बंगाल और बिहार प्रदेश की यात्रा) का विवरण इस कृति में दिया गया है। इसमें यात्रा के बीच आने वाले गांव या शहरों का इतिहास भी संकलित है। संस्मरण और इतिहास प्रधानात्मक इस कृति में प्रवचनों का स्पर्श नहीं के बराबर हया है।
संस्मरण साहित्य
1. रश्मियां-मुनि श्रीचन्द्रः-इस कृति में प्राचार्य श्री तुलसी के ऐसे क्षणों को सूक्ष्मता से पकड़ा गया है जो जीवन की पगडंडी पर दिशा-संकेत बनकर मार्ग दर्शन करते हैं और व्यवहार में सरस जीवन जीने की कला सिखाते हैं। प्राचार्य श्री तुलसी की पैनी दृष्टि ने हर वस्तु में गुणों को ग्रहण किया है।
2. आचार्य श्री तुलसी अपनी छाया में-मुनि सुखलाल:-इस कृति में प्राचार्य श्री तुलसी के ऐसे संस्मरण संकलित है जो शिक्षाप्रद होने के साथ-साथ जीवन को समरस बनाने में उपयोगी हैं । इन संस्मरणों में प्राचार्य श्री तुलसी के विचार, स्वभाव और प्रकृति का प्रतिबिम्ब बहुत सुन्दर ढंग हया है।
3. जय सौरभ--मुनि छनमलः-एक पद्य पर एक संस्मरण को कहने वाली यह कृति जयाचार्य के जीवन के सौ संस्मरणों का संग्रह है।
4. महावीर की सूक्तियां--मेरी अनुभूतियां-मुनि छत्रमल:-प्रस्तुत पुस्तक में भगवान महावीर की वाणी के संदर्भ में अपनी विभिन्न घटनाओं को देखा गया है।
5. बुद्ध की सूक्तियां मेरी अनुभूतियां--मुनि छनमल:-प्रस्तुत पुस्तक में अपनी अनुभूतियां और संस्मरणों के आलोक में भगवान बुद्ध की वाणी की तुलनात्मक स्मृति की गई है।
इतिहास साहित्य:
1. तेरापन्थ का इतिहास भाग1--मुनि बुद्धमल:-इस ग्रन्थ में दस परिच्छेद तथा दस परिशिष्ट हैं। प्रथम परिच्छेद में प्राग ऐतिहासिक काल और ऐतिहासिक काल में होने वाली जैन धर्म की स्थितियों का संक्षिप्त विवरण है। दूसरे परिच्छेद से लेकर दसवें परिच्छेद तक तेरापन्थ के नौ प्राचार्यों का क्रमशः एक-एक परिच्छेद में वर्णन है। प्रत्येक प्राचार्य का जीवन तथा उसका व्यक्तित्व और कृतित्व, संत सतियों की ख्यात, संप्रदाय की परम्परा, आन्तरिक व्यवस्था, अनुशासन, मर्यादा, विकास क्रम, युगानुकुल परिवर्तन आदि विविध सामग्री इस ग्रन्थ में संग्रहीत की गई हैं। इसमें उन घटनाओं का भी उल्लेख है जो संघ में श्रुतानु श्रुतिक रूप से प्रचलित थी।