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अनुदित:--
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संबोधि——व्याख्याकार मुनि शुभकरणः - प्रस्तुत ग्रन्थ मुनि श्री नथमल जी कृत संबोधि की विस्तृत व्याख्या है । इसे जैन गीता भी कहते हैं । गीता का अर्जुन कुरुक्षेत्र के समरांगण में क्लीव होता है तो संबोधि का मेघकुमार साधना की समर भूमि में वलीब बनता है। गीता के गायक योगिराज कृष्ण हैं और संबोधि के गायक भगवान् महावीर । अर्जुन का पौरुष - जाग उठा कृष्ण का उपदेश सुनकर और महावीर की वाणी सुन मेघकुमार की आत्मा चैतन्य से जगमगा उठी । मेघकुमार ने जो प्रकाश पाया वही प्रकाश प्रस्तुत ग्रन्थ में व्यापक बना है । संवाद शैली में लिखा गया यह ग्रन्थ समग्र जैन दर्शन का प्रतिनिधित्व करता है ।
24. अध्यात्म धर्म जैन धर्म -- अनु. मुनि शुभकरण :- उडीसा के ख्याति प्राप्त विद्वान पंडित नीलकन्ठ दास ने गीता पर उडिया भाषा में टीका लिखी थी । उसकी भूमिका में जैन धर्म सम्बन्धी एक महत्वपूर्ण अध्याय लिखा था । प्रस्तुत पुस्तक उसी का हिन्दी अनुवाद है । इसमें ऐतिहासिक दृष्टि से जैन धर्म की प्राचीनता अनेक उद्धरणों से सिद्ध की गई है तथा समस्त भोगवादी या श्रात्मवादी धर्मों पर जैन धर्म दर्शन का प्रतिबिम्ब माना गया है ।
25. उडीसा में जैन धर्म-मुनि अनु. शुभकरणः - सम्राट खारवेल ने कलिंग में जैन धर्म को बहुत प्रभावी बनाया । उस समय उडीसा जैन धर्म और जैन श्रमणों के परिव्रजन का महान केन्द्र था । खारवेल ने ग्रागम वाचना की योजना की थी । जैन परम्परा में सम्राट खारवेल का वही स्थल है जो बौद्ध परम्परा में सम्राट अशोक का है ।
में कलिंग में जैन धर्म के प्रभाव की परिस्थितियों का इतिहास का विस्तृत अध्याय इस पुस्तक से पुनः प्रकाश में में डा. लक्ष्मीनारायण साहू द्वारा लिखित प्रोडिसा रे जैन धर्म का हिन्दी अनुवाद है ।
प्रस्तुत पुस्तक में इतिहास के संदर्भ विशद विवेचन किया गया है । जैन आएगा । प्रस्तुत पुस्तक उडिया भाषा
यात्रा साहित्य:
1. नव निर्माण की पुकार -- सं. सत्यदेव विद्यालंकारः -- प्रस्तुत पुस्तक में अणुवृत आन्दोलन के प्रर्वतक आचार्य श्री तुलसी की दिसम्बर 1956 की 39 दिन की दिल्ली यात्रा का वर्णन है । इसमें प्रेरणाप्रद संदेशों, दार्शनिक प्रवचनों, देश-विदेश के लब्ध प्रतिष्ठित विचारकों, पत्रकारों, धार्मिक नेताओं, राजनीतिज्ञों तथा कूटनीतिज्ञों के साथ जीवन निर्माण सम्बन्धी चर्चा, विचार-विनिमय का दिन क्रम से विवरण प्रस्तुत किया गया है । प्रस्तुत पुस्तक में 23 प्रायोजनों, 19 प्रवचनों तथा 32 चर्चा वार्ताओं की सामग्री है ।
2. कुछ देखा कुछ सुना कुछ समझा- - मुनि नथमल:- प्रस्तुत पुस्तक प्राचार्य तुलसी की राजस्थान (लाडनू') से कलकत्ता और वहां से वापस राजस्थान ( सरदारशहर) आने तक की यात्रा का इतिहास है । उपन्यास की शैली से लिखा गया यह यात्रा विवरण बहुत ही रोचक और तत्कालीन घटनाओं का सुन्दर विवेचन प्रस्तुत करता है ।
इसके परिशिष्ट में तारीख क्रम से दो वर्षों की विशेष घटनाओं की संकलना प्रस्तुत की गई है ।
3. पदचिन्ह - मुनि श्री चन्द्रः - इस कृति में 27-3-62 से 3-2-63 तक आचार्य श्री तुलसी के परिव्रजन का इतिहास बोलता है । यात्रा के साथ घटने वाले संस्मरण, प्रश्नोत्तर, प्रवचन, प्रोग्रामों आदि का सजीव वर्णन है । इस कृति में न केवल यात्रा का दर्पण ही दिया गया है अपितु प्रसंगोपात विचार भी दिए गए हैं जिससे इसकी रोचकता और ग्राह्यता अधिक बढ़ गई है ।