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________________ 330 आप जाने जाते हैं । प्रबन्ध काव्य के रूप में 'धर्मवीर सुदर्शन' और 'सत्य हरिश्चन्द्र' आपकी लोकप्रिय कृतियां हैं। मुक्तक काव्य के क्षेत्र में कविता कुंज, अमर माधुरी, अमर गीतांजली, अमर पद्य मुक्तावली, संगीतिका यदि आपको कई कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। आपका गद्य साहित्य भी विपुल और वैविध्यपूर्ण हैं । आपने गद्य की सभी विधात्रों में लिखा है -- क्या कहानी, क्या निबन्ध, क्या संस्मरण, क्या यात्रावृत्त, क्या गद्य काव्य । सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा से आपके अनेक ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं । कविजी शास्त्रज्ञ, होते हुए भी प्राचीन शास्त्रीय परम्परा से बन्धे हुए नहीं हैं । आप युग चेतना और आधुनिक जीवन संवेदना के क्रांतदर्शी कवि और व्याख्याता है । इस कारण आपके विचारों में नया चिन्तन और विषय को नवीन परिप्रेक्ष्य में प्रतिपादित और पुनर्व्यख्यायित करने की क्षमता है। आपकी भाषा में प्रवाह और माधुर्य देखते ही बनता है । आपके विचारों में स्पष्टता, निर्भीकता और समन्वयशीलता का गहरा पुट है । हृदय और बुद्धि, भावना प्रौर तर्क, नम्रता और दृढता के मेल से निसृत आपके विचार सबको प्रेरित प्रभावित करते हैं । एक उदाहरण देखिए- " सह अस्तित्व का नारा हैं-- हम सब मिलकर चलें, मिलकर बैठें, मिलकर जीवित रहें और मिलकर मरें भी 1 परस्पर विचारों में भेद है, कोई भय नहीं । कार्य करने की पद्धति विभिन्न है, कोई खतरा नहीं । क्योंकि तन भले ही भिन्न हो, पर मन हमारा एक है। जीना साथ हैं, मरना साथ है, क्योंकि हम सब मानव हैं और मानव एक साथ ही रह सकते हैं, बिखर कर नहीं, बिगड़ कर नहीं" । ( उपाध्याय अमरमुनि - - एक अध्ययन, पृष्ठ 301 से उद्धृत ) 8. मरुधर केसरी मुनि श्री मिश्रीमलजी म. -- आप राजस्थानी और हिन्दी के यशस्वी कवि होने के साथ-साथ प्रखर व्याख्याता श्रीर सबल संगठक भी हैं । अपने सुदीर्घकालीन संयम निष्ठ साधनामय जीवन में आपने लोक मानस को आत्मोत्थान की और प्रेरित करते हुए समाज को संस्कारनिष्ठ और आत्म निर्भर बनाने की दृष्टि से विभिन्न जनकल्याणकारी संस्थाओं, शिक्षणालयों और छात्रावासों को स्थापित करने की प्रेरणा दी है । आपकी प्रवचन शैली में मिश्री सी मधुरता और समाज में व्याप्त कुरीतियों पर प्रहार करने की कठोरता एक साथ देखी जाती है । किसी गंभीर विषय को उठाकर भी आप छोटे-छोटे पौराणिक प्रसंगों, प्रेरणादायी एतिहासिक घटनाओं और अपनी पदयात्रा तथा चातुर्मास काल से सम्बद्ध विविध संस्मरणों और संपर्क में आये हुए विभिन्न व्यक्तियों को जीवन स्थितियों का पुट देकर उसे सहज, सरल और रोचक बना देते हैं । कत्रि होने के कारण यापके व्याख्यातों में काव्यात्मक अश का विशेष पुट रहता है । आप अपनी स्वरचित राजस्थानी, हिन्दी कविताओं के प्रतिरिक्त अन्य साहित्यिक कवियों और उर्दू शायरों के उदाहरण भी देते चलते हैं । आपका प्रवचन साहित्य विविध और विशाल है। अब तक जो प्रवचन संग्रह प्रकाशित हुए हैं, उनमें मुख्य हैं- जीवन ज्योति, साधना के पथ पर, प्रवचन प्रभा, धवल ज्ञान धारा और प्रवचन सुधा । 'जैन धर्म में तप स्वरूप और विश्लेषण' आपकी अन्य महत्वपूर्ण कृति है जिसमें तप का सांगोपांग समीक्षात्मक विवेचन प्रस्तुत किया गया है । आपके द्वारा श्रीमद् देवेन्द्र सूरि विरचित 'कर्म ग्रन्थ' की छह भागों में विस्तृत व्याख्या, विवेचन और समीक्षा की गई है । 'श्री मरुधर केसरी सुधर्म प्रवचन माला' के अन्तर्गत श्रापकी क्षमा, मुक्ति, आर्जव, मार्दव, लाघव,
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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