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हिन्दी पद्य साहित्य एवं साहित्यकार-5
पं. भंवरलाल न्याय तीर्थ राजस्थान में हिन्दी पद्य साहित्य का निर्माणकाल 100-150 वर्ष पूर्व से प्रारम्भ होता है । इसके पूर्व राजस्थानी की विभिन्न शाखाओं में जैसे राजस्थानी, हूंढारी, मेवाती आदि भाषाओं में लिखा जाता रहा था। यद्यपि संवत् 1900 के पूर्व निबद्ध कृतियों, काव्यों एवं मुक्तक रचनाओं में हिन्दी का पुट मिलता है लेकिन हम उन्हें पूर्ण हिन्दी की कृतियां नहीं कह सकतं । ज्यों-ज्यों खडी बोली का प्रचार-प्रसार होता गया और गद्य-पद्य में रचनाएं होने लगी तो जैन कवियों ने भी विभिन्न विषयों में लिखना प्रारम्भ कर दिया। दिगम्बर जैन कवियों ने प्रात्मापरमात्मा के अतिरिक्त सामाजिक, राष्ट्रीय एवं साहित्य के अन्य अंशो पर भी बहत लिखा है। हिन्दी पद्य साहित्य के विकास में उन्होने अपना अच्छा योगदान दिया है। सारे राजस्थान में विशेषत: जयपुर, कोटा, बूंदी, अलवर, भरतपुर, सीकर व उदयपुर जैसे प्रदेशों में अनेक कवि हुए जिन्होंने हिन्दी भाषा में छोटी-बड़ी अनेक रचनाएं कीं। लेकिन माहित्य निर्माण के इस काल का इतिहास में कोई उल्लेख न होने के कारण अभी तक न किसी कविका और न उसकी कृति का कोई मल्यांकम हो सका है। इसलिये ऐसे कदियों का आज भी पूरा परिचय उपलब्ध नहीं हो सका है। प्रस्तुत लेख में ऐसे ही कुछ कवियों का परिचय प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है 1. पं. महाचन्द
सीकर निवासी पं. महानन्दजी हिन्दी गद्य व पद्य के अच्छे लेखक थे। सम्बत 1915 में उन्होंने विलाकसार पूषा लिखी जो अत्यधिक लोकप्रिय है। तत्वार्थ मूत्र की हिन्दी टीका इन्होंने की तथा अनेक भक्ति परक पद लिखे । प्रापके पदों की भाषा हिन्दी है परन्तु इस पर राजस्थानी का भी प्रभाव है। इन्होंने प्रत्येक पद में नाम के साथ "बध" शब्द का प्रयोग किया है।
ईश्वर के दर्शन बिना कवि का एक क्षण भी कटना कठिन लगता है :----
कैसे कटे दिन रैन , दरश बिन • • • • • • • जो पल घटिका तुम बिन बीतत सो ही लगे दुख देन' - - - - 'दरश बिन
कवि मक्ति जाना चाहता है, पर कैसे जाय-मार्ग तो भूल रहा है...--
मैं कैसे शिव जाऊं रै डगर भलावनी, बालपने लरकन संग खोयौ, त्रिया संग जवानी ।
बद्ध भयो सब सुधि गयी भजी जिनवर नाम न जानी अत: जिनवाणी का अध्ययन करो----
जिनवाणी सदा सुखकारी जानि तुम सेवो भबिक जिनवानी । 2. थानसिंह अजमेरा
अजमेरा जयपुर में 20 सदी के पूर्वार्द्ध में हुए थे। थानविलास इनकी प्रमुख कृति है जिसमें इनकी विविध रचनाओं का संग्रह है। कवि की भाषा और शैली दोनों ही अच्छे स्तर की है।