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________________ 307 यदि नहीं प्रेमकी जलधारा में बहा सके, तो गंगा में डुबकी लेने से क्या होगा ? तुम श्रम की पावन बन्दों में गोते खाओ । होगा पाषाणों के पूजन-अर्चन से, मानव मूरत जब तक मन में नहीं बसायो । क्या - ( माटी कुंकुम, पृ. 17 ) श्री शोभाचन्द्र भारिल्ल का भी कविता के क्षेत्र में प्रशंसनीय योगदान है । अपने “भावना” नामक काव्य संग्रह में वे एक सशक्त और प्रभावशील कवि के रूप में समक्ष प्राते हैं । स्व, संवर, निर्जरा, लोक आदि तत्वों का उन्होंने सुन्दर ढंग से काव्यात्मक विश्लेषण किया है। इनकी कविताओं में कर्मचालित नियति की चर्चा अनेक स्थानों पर देखी जा सकती है । अपने एक छन्द में उन्होंने कर्म को मदारी और जीवों को बन्दरों का प्रतीक बना कर कर्मवाद की स्थापना को रूपकात्मक ढंग से चित्रित किया है: "कर्म और कषायों के वश होकर प्राणी नाना, कायों को धारण करता है तजता है जग नाना, है संसार यही, अनादि से जीव यहीं दुख पाते, कर्म मदारी जीव वानरों को हा, नाच नचाते ।" -- ( भावना, पृ. 7) उपर्युक्त कवियों के प्रतिरिक्त श्रमणवर्ग और गृहस्थवर्ग में अनेक कवि हैं जो समयसमय पर अपनी काव्याराधना से मां भारती का भण्डार समृद्ध कर रहे हैं । श्रमण वर्ग के कवियों में सर्वश्री सूर्य मुनि, मधुकर मुनि सौभाग्य मुनि 'कुमुद', उमेश मुनि 'अणु', सुमेर मुनि, मदन मुनि 'पथिक', भगवती मुनि 'निर्मल', मगन मुनि 'रसिक', रजत मुनि, सुकन मुनि, रमेश मुनि, अजित मुनि 'निर्मल', रंग मुनि, अभय मुनि, विनोद मुनि, जिनेन्द्र मुनि, हीरा मुनि 'हिमकर', वीरेन्द्र मुनि, राजेन्द्र मुनि, शांति मुनि, पारस मुनि यादि तथा गृहस्थ वर्ग के कवियों में सर्व श्री डा. इन्दरराज बैद'], सूरजचन्द सत्यप्रेमी ( डांगीजी), पं. उदय जैन, रत्नकुमार जैन 'रत्नेश,' दौलतरूपचन्द भण्डारी, जीतमल चौपड़ा, ताराचन्द मेहता, डा. महेन्द्र भानावत, चम्पालाल चौरड़िया, विपिन जारोली, हनुमानमल बोथरा, मदनमोहन जैन 'पवि', जितेन्द्र धींग आदि के नाम उल्लेखनीय हैं । इस प्रकार हम देखते हैं कि राजस्थान की स्थानकवासी जैन परम्परा ने हिन्दी साहित्य क्षितिज पर ऐसे अनेक नक्षत्रों को प्रस्तुत किया है जिन्होंने अपनी शब्द - साधना के ग्रालोक से धर्म और समाज के अभ्युदय का मार्ग प्रशस्त किया है । इन कवियों की काव्य-साधना के मुख्यतः दो लक्ष्य रहे हैं-- एक, अपनी विचारधारा का पोषण और दूसरा हिन्दी की सेवा । प्रस्तुत लेख में विवेचित कवि इन दोनों ही लक्ष्यों की पूर्ति में लगे हुए शताधिक कवियों का प्रतिनिधित्व करते हैं । ये केवल स्थानकवासी चिन्तन को ही व्याख्यायित- प्रतिपादित नहीं करते, हिन्दी कविता की विविध शैलियों, प्रयोगों और आयामों का भी स्वरूप दर्शन कराते हैं । 1 इस लेख के लेखक डा. इन्दरराज बैद प्रोजस्वी कवि होने के साथ-साथ सुधी समीक्षक और प्रबुद्ध विचारक भी हैं। "राष्ट्र मंगल" नाम से इनका एक कविता संग्रह प्रकाशित हुआ है । इसमें कवि की मानवतावादी राष्ट्रीय भावना की संपोषक, लोकमंगलवाही 41 कविताएं संग्रहीत 1 आवेगमयी भाषा और उद्बोधन भरा जागृति स्वर इन कविताओं की मुख्य विशेषता है । -संपादक ।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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