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किया जा रहा है। इस ग्रन्थ में राजस्थान के प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, राजस्थानी व हिन्दी भाषा के जैन साहित्य की प्रवृत्तियों और साहित्यकारों का, विद्वान् मुनियों और लेखकों द्वारा जो परिचय, समीक्षण और मूल्यांकन प्रस्तुत किया गया है उससे प्राचीन काल से अद्यावधि तक अनवरत रूप से प्रवहमान साहित्य-साधना की विभिन्न धाराओं और विच्छित्तियों से साक्षास्कार ही नहीं होता वरन राजस्थान की धार्मिक, सांस्कृतिक चेतना को समझने में भी मदद मिलती है।
डॉ. नरेन्द्र भानावत
प्राध्यापक, हिन्दी विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर ।
सी-235-ए, तिलकनगर, जयपुर-4