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________________ 305 केवल मुनि की गीतात्मक पंक्तियों में पर्याप्त भाव निहित रहता है। अपनी बात को समझाने का उनका अपना विशिष्ट ढंग है। वे ऐसे दृष्टान्त या उपमान चुनते हैं जिनका प्रभाव सीधा और गहरा पड़ता है। प्रस्तुत उद्धरणों में से एक में उन्होंने चिन्ता को ऐसा बोझा माना है, जिसे ढोने पर कोई मजदूरी मिलने की संभावना नहीं है और दूसरे में वे काले धन को ऐसी कागज की नाव मानते हैं, जिसके गलने में कोई आशंका नहीं की जा सकती। कितने स्पष्ट पर गहन अर्थ से पूर्ण हैं ये काव्यांश :-- ) सिर पं लगालो प्रानन्द की रोली, फेंक दो साथी चिन्ता की झोली. जिसकी मज़दूरी भी मिले नहीं, ऐसे भार को ढोना क्या ? --(कुछ गीत, पृ 15) (आ) पापों की पूंजी प्यारे, पचती नहीं कभी भी, कागज़ की नाव पल में डूबेगी, जब गलेगा।" --(गीत-गुंजार, पृ. 56) स्थानकवासी जैन परम्परा के कवियों की पंक्ति में कुछ और भी उल्लेखनीय हस्ताक्षर हैं, जैसे रमेश मनि, सुभाष मनि, अशोक मनि और मल मनि। मेवाड़ भषण श्री प्रतापमल के शिष्य रत्न श्री रमेश मुनि एक उदीयमान कवि हैं। “बिखरे मोती, निखरे हीरे" उनकी महत्वपूर्ण काव्य कृति है, जिसमें उनकी काव्य सृजन प्रतिभा के संकेत मिलते हैं। उन्होंने अपने ढंग से अत्यन्त सरल भाषा में वैराग्य शतक, सतयुग शतक, और कलयुग शतक की रचना की है। सौ-सौ छंदों में उन्होंने सतयुग और कलयुग की प्रवृत्तियों का सुन्दर चित्र समुपस्थित किया है। इसी प्रकार वीर-गण इक्कीसी, पर्व इक्कीसी और प्रार्थना पच्चीसी उनक आध्यात्मिक भावों से ओत-प्रोत सुन्दर रचनाएं हैं। जैन दिवाकर मनि श्री चौथमलजी की शिष्य परम्परा में श्री सुभाष मुनि और श्री अशोक मुनि ने भी अनेक रचनाएं लिखी हैं। इन कवि-द्वय ने संगीत का अधिक सहारा लिया है। इनके गीतों में जहां आध्यात्मिक प्रकाश की झलक है, वहीं सामाजिक उद्धार के स्वर भी विद्यमान हैं। नवकार चालीसा, जिन-स्तुति -- और संगीत संचय के रचयिता श्री अशोक मनि की ये मानवतावादी पंक्तियां द्रष्टव्य हैं : "सूरज सब के घर जाता, पानी सब की प्यास बुझाता, पवन जगत के प्राण बचाता, धरती तो है सबकी माता, इसपै कोई अधिकार जताए कैसा है अज्ञान ! मानव मानव एक समान । --संगीत संचय, पृ. 15) श्री मल मुनि ने “समरादित्य चरित्र, कुवलयमाला-चरित्र, अजापुन चरित्र, अम्बड चरित्र' आदि प्राचीन कथानों को लेकर लघ चरित काव्य लिखे हैं। "अपना खे चरित काव्य लिखे हैं । “अपना खेल : अपनी मुक्ति” गौतम पृच्छा के ढंग पर लिखी गई कृति है जिसमें अच्छे-बुरे कर्म के पुण्यफलपापफल की प्रश्नोत्तर शैली में विवेचना की गई है। श्रमणों की भांति काव्य के क्षेत्र में जैन श्रावक कवियों का भी अमूल्य योगदान रहा है। वर्तमान काल में सैकड़ों ऐसे काव्यधर्मी साहित्यिक हैं जिन्होंने अपनी शब्द साधना से धर्म और समाज की महनीय सेवा की है। ऐसे श्रमणेतर श्रावक कवियों में श्री नैनमल जैन का नाम आदर के साथ लिया जा सकता है। जालोर जिले में साहित्य की दिव्य ज्योति को अपनी मूक गम्भीर साधना से प्रदीप्त रखने वाले नैनमल जैन ने करुणा सिंध नेमिनाथ और
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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