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( आ ) " पल-पल में यहां मधुर मिलन, पल-पल में यहां बिछुड़ना है । जग ग्रांख मिचौनी की क्रीड़ा, खिलना और सिकुड़ना है ।" - ( वही, पृ. 46 )
संसार को असार मानने वाले जैन कवियों की रचनाओं में स्वाभाविक रूप से ऐसे स्थल कम मिलेंगे, जिसमें कल्पना और रमणीयता अपेक्षाकृत अधिक पायी जाती हो । धर्म की मर्यादा में बंधा जैन कवि मुक्तक रचनाओं में हरी भरी प्रकृति की रमणीयता का वर्णन यदाकदा ही कर पाता है । श्री गणेश मुनि इसके अपवाद हैं । कवि की लेखनी ने प्रकृति के मनोहारी बिंब उभारे हैं । एक छटा द्रष्टव्य हैः-
"चांद सितारे नभ प्रांगण में पुलक पुलक रस नाच रहे, फलित पादपों की डाली पर लचक लचक खग नाच रहे । सागर के वक्षस्थल पर यह मादक लहरों का अभिनर्तन, fee प्रत्याशित अतिथि के आने का है मौन निमंत्रण ।”
--- (वही, पृ. 165 )
गणेश मुनि ने नयी शैली में भी रचनाएं की हैं।
नयी कथात्मक शैली में लिखी गई रचनाएं 'सुबह के भूले" नामक संग्रह में संकलित हैं । इन कविताओं में उन्होंने प्ररणक, रथनेमि, आषाढ़ भूति,, बाहुबलि, गौतम, कपिल, त्याग-भद्र, अर्जुनमाली, चन्दनबाला, आदि के उदात्तजीवन-प्रसंगों को प्रभावकारी ढंग से उजागर किया है । सम्राट दशार्णभद्र को श्रमण के वेश में देख कर दर्पोद्धत देवराज इन्द्र भी पानी-पानी हो गए और कहने लगे-
"संसार के वैभव को
दे सकता है चुनौती इंद्र पर त्याग के ऐश्वर्य से टकराने का नहीं है सामर्थ्य उसमें,
आध्यात्मिक बल समक्ष टिक नहीं सकती देव शक्ति एक पल भी,
-- ( सुबह के भूले, पृ. 62-63)
राजस्थान की स्थानकवासी जैन परम्परा के पोषक आधुनिक हिन्दी कवियों में
मुनि श्री महेन्द्रकुमार 'कमल' का नाम बड़े आदर और गौरव के साथ लिया जाता है । 'विधि के खेल, भगवान् महावीर के प्रेरक संस्मरण, मन की वीणा, मन के मोती, प्यासे स्वर, प्रादर्श महासती राजुल, फूल और अंगारे, प्रकाश के पथ पर' आदि अनेक काव्य-कृतियों के माध्यम से प्राध्यात्मिकता, नैतिकता और मानवीयता की त्रिवेणी प्रवाहित करने वाले इस प्रोजस्वी संत कवि ने हिन्दी का अलख जगाने का साधु प्रयास भी किया है। इनकी कविताओं में जहां एक ओर अध्यात्म-सुरभि से परिपूर्ण सुमनावलियों के दर्शन होते हैं। से श्रोतप्रोत शब्दों के अंगारे भी दमकते हुए दिखाई पड़ते हैं। यह है आह्वानः-
वहां उद्बोधन के श्रोज चुनौतीपूर्ण शब्दों में उनका
जड़ सिद्धांतों की लाशों का कब तक भार उठाओगे, परित्याग ही श्रेष्ठ श्रन्यथा मिट्टी में मिल जाओगे । ओ प्रतीत में रमने वालो, वर्तमान भी पहचानो, सोचो, समझो, भांखें खोलो, केवल अपनी मत तानो ।
उठो साथियों, गलत रूढियां कब तक कहो, करोगे सहन, एक नया परिवर्तन ला दो या फिर लो चूडियां पहन ।"
- ( मन के मोती, पृ. 96 )