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भाषा के अच्छे जानकार है। इनका 'जयपुर राज्य के हिन्दी कवि और लेखक, नामक वृहत निबन्ध 'हिंदी साहित्यकार परिचय' में प्रकाशित हुआ था। स्वर्गीय कविया बारहठ श्री मरारिदान जी के साथ इन्होंने 'बांकीदास ग्रन्थावली भाग 2-3, रघनाथ रूपक गीतां रो' और श्री उमरावचन्द जी जरगड के साथ 'ग्रानन्दघन ग्रन्थावली' का सम्पादन किया है। स्वतंत्र रूप से इन्होंने 'लावा रासा' का सम्पादन किया है। इस ग्रन्थ पर इन्हें नागरी प्रचारिणी सभा, काशी द्वारा 'रत्नाकर पुरस्कार, एवं 'बलदेवदास पदक' प्रदान किया गया। इन्होंने स्फट पद्य भी प्रबर परिमाण में बनाये हैं। आजकल आप श्रीमाल संघ, जयपुर से सम्बन्धित इतिवृत्त के संग्रह में लगे हुए हैं।
इनके अतिरिक्त वर्तमान समय में अनेकों विद्वान व लेखक हए हैं तथा विद्यमान हैं जिन्होंने बहुत कुछ लिखा है किन्तु उनका साहित्य सन्मुख न होने के कारण लिखने में असमर्थता है फिर भी कतिपय विद्वानों के नामोल्लेख किये
साध वर्ग में विजय ललितसूरि, विजय सुशीलसूरि, विजय दक्षसूरि, विजय कलापूर्ण सूरि, माणकमुनि (कल्पसूत्र), मुनि महेन्द्रसागर (महेन्द्र विलास), मुनि कान्तिसागर (कान्ति विनोद) अादि की कई पुस्तके प्रकाशित हो चुकी हैं।
साध्वी वर्ग में विचक्षणश्री अच्छी विदुपी साध्वी हैं। इनके गुणकीर्तनात्मक स्तवनादि प्राप्त है। इसी प्रकार साध्वी सज्जनश्री ने कतिपय स्तवनादि तथा कल्पसूत्र आदि 3-4 ग्रन्थों के अनुवाद किये है।
इसी प्रकार उपासक वर्ग में जवाहरलाल नाहटा (भरतपुर) के कई समाज सुधार सम्बन्धी लेख, शुभकरणसिंह बोथरा (जयपुर) के दार्शनिक लेख, जीतमल लूणिया (अजमेर), सिद्धराज ढड्ढा (जयपुर), पूर्णचन्द्र जन (जयपुर), भूरेलाल बया (उदयपुर), फलचन्द बाफना (फालना) आदि के मानवता और गांधीवाद से प्रभावित लेख, केसरीचन्द भाण्डावत (अजमेर) के जीव-हिंसा विरोधी लेख, बलवन्तसिंह मेहता (उदयपुर) के खोजपूर्ण लेख, ताजमल बोथरा (बीकानेर), पानमल कोठारी (नागौर), पारसमल कटारिया (जयपुर), हीराचन्द वैद (जयपुर), गोपीचन्द धाडीवाल (अजमेर), हस्तिमल धाडीवाल (अजमेर), चांदमल सीपाणी (अजमेर) के धर्मसम्बन्धी लेख एवं पुस्तकें, राजरूप टांक (जयपूर). के जवाहरात पर लेख, देवीलाल सांभर (उदयपुर) और श्री कोमल कोठारी के राजस्थानी लोक कला और साहित्य सम्बन्धी लेख प्रकाशित हो चुके हैं। बुद्धसिंह बाफना (कोटा) ने अंग्रेजी भाषा में अनेकों दर्शनिक कविताओं की रचना की है।
प्रसिद्ध इतिहासविद् डा. दशरथ शर्मा ने अनेकों जैन पुस्तकों की भूमिकाये लिखी हैं तथा जैन साहित्य एवं शिलालेखों पर कई शोधपूर्ण लेख लिखे है। जैन शिलालेख और मतिलेखों पर श्री रत्नचन्द्र अग्रवाल और श्री रामवल्लभ सोमानी ने भी अनेकों खोजपूर्ण लेख लिखे हैं। स्वर्गीय पं. श्री जयदयालजी शर्मा (बीकानेर) ने मंत्रराज गण कल्प महोदधि'पादि पुस्तकों का हिन्दी में अनुवाद किया था। उपसंहार
17 वीं शताब्दी से 20 वीं शताब्दी तक जिन श्वेताम्बर लेखकों द्वारा हिन्दी साहित्य लिखा गया वह हिन्दी के बढ़ते हुए विस्तार का सूचक है, क्योंकि उस समय तक राजस्थान के कुछ हिस्से को छोड़ कर अधिकांश भाग में बोलचाल की भाषा राजस्थानी ही थी। वैसे जैन कवियों ने प्रायः सभी भाषाओं और विषयों पर सर्व-जनोपयोगी साहित्य विपुल परिमाण में लिखा है और जहां तक श्वेताम्बर हिन्दी साहित्य का प्रश्न है उसमें भी काफी विविधता पाई जाती है। कुछ हिन्दी रचनायों में रचना-स्थान का उल्लेख न होने से वे राजस्थान में ही रची गई हैं ऐसा निर्णय नहीं हो सका, अत: उन रचनाओं को इसमें सम्मिलित नहीं किया जा सका है।