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________________ 193 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। आप 'वैकटेश्वर समाचार' आदि कई पत्रों के संपादक भी रह चुके हैं। इस प्रकार आपने अपना अधिकांश जीवन साहित्य निर्माण में ही लगाया था। 66. कस्तूरमल बांठिया श्री बांठिया जी अजमेर में रहते थे। हिन्दी बहीखाता, इन्कम टैक्स के हिसाब, रूई और उसका मिश्रण' आदि पुस्तकें लिखी। प्रौढावस्था में आपने जैन साहित्य का विशेष अध्ययन किया और हेमचन्द्राचार्य जीवन चरित्र का अंग्रजी से अनवाद किया। समय-समय पर आपके अनेकों लेख भी सामयिक पत्र-पत्रिकायों में प्रकाशित हुये हैं। आपने कई जैनागमों के गजराती और अंग्रेजी ग्रन्थों के हिन्दी में अनुवाद किये हैं। इनमें से 'जैनिज्म इन विहार' का जैन-भारती में अन वाद प्रकाशित हया । 'जैनिज्म इन गुजरात' और 'जैन पार्ट' का भी आपने अनुवाद किया था। गोपालदास पटेल आदि के गुजराती भाषा में लिखित कई अागमों के अनुवाद भी आपने हिन्दी में किये थे, किन्तु वे अभी तक अप्रकाशित है। श्री भोगीलाल सांडेसरा की गुजराती पुस्तक 'वस्तु-पालनुं विद्यामण्डल' का हिन्दी में 'वस्तुपाल महामात्य का साहित्य-मण्डल और उसकी संस्कृत साहित्य को देन' नाम से अनुवाद भी किया था जो प्रकाशित हो चुका है। 67. दौलतसिंह लोढा 'अरविन्द' सं. 1914 धामणिया ग्राम (मेवाड़) में इनका जन्म हुआ था । बी. ए. तक अध्ययन करके राजेन्द्र गुरुकुल बागरा में प्रधानाध्यापक का कार्य किया । श्री विजय यतीन्द्रसरि की प्रेरणा से काव्य और गद्य रचनायें लिखनी प्रारम्भ करदी। इनका उपनाम 'अरविन्द' था। सर्व प्रथम, 'श्री मनोहर विजय', तदनन्तर 'जैन-जगती' हरिगीतिका छंदों में बनाई। जैन-जगती जैन समाज का सचित्र चित्रण करने वाला अच्छा काव्य है। इसके बाद व भोपालगढ, सुमेरपुर आदि में बोडिग सुपरिन्टेन्डेन्ट के रूप में रहे। अन्त में भीलवाडा में रहने लगे। छोटी-मोटी 33 पुस्तकें आपकी प्रकाशित हो चुकी है। जिसमें इतिहास सम्वन्धी 'प्राग्वाट इतिहास, पल्लीवाल जैन इतिहास, राणकपुर जैन इतिहास, श्री प्रतिमा लेख संग्रह' आदि उल्लेखनीय हैं। काव्यों में जैन-जगती के अतिरिक्त 'राजीमति, दस निकुंज, छत्र प्रताप, रसलता और वसुमती' आदि उल्लेखनीय हैं। आपके संपादित 'राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ' और 'यतीन्द्रसूरि अभिनन्दन त कर्मठ एवं सुकवि थे। आपसे समाज को बहुत कुछ आशायें थी किन्तु आपका असमय में 49 वर्ष में ही निधन हो गया। 68. उमरावचन्द जरगड इनका जन्म वि. सं. 1959 में जयपुर में हुआ । इनके पिता का नाम श्री मालवंशी नेमिचन्दजी जरगड था। इनका जैन-दर्शन और अध्यात्म की तरफ विशेष आकर्षण था। जवाहरात का व्यापार था। वि.सं. 2028 में इनका स्वर्ग हुआ। इनकी लिखित एवं सम्पादित पुस्तकें निम्न प्रकार हैं : देवचन्द्र जी कृत चतुर्विंशति जिन स्तवन (सानुवाद) प्रार्थना और तत्वज्ञान देव चन्द्र जी कृत स्नानपूजा (सानुवाद) आनन्दघन ग्रंथावली (सानुवाद) 69: पं. भगवानदास जैन इनका जन्म सं. 1945 में पालीताणा में हया। उनके माता-पिता का नाम कल्याण ई और गंगाबाई हैं। आचार्य विजय धर्मसूरि स्थापित यशोविजय जैन पाठशाला,
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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