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________________ 292 68. साध्वीवर्ग जैन परम्परा में प्रारम्भ से ही स्त्रियों को समान धार्मिक अधिकार दिये गये और चतुर्विध संघ में साधु के साथ साध्वी और श्रावक के साथ श्राविका भी सम्मिलित है। राजस्थान में खरतरगच्छ का अधिक प्रभाव व प्रसार रहा और इस गच्छ की अधिकांश साध्वियो राजस्थान में ही जन्मी हुई हैं। वैसे इनका विहार बहुत दूर-दूर तक भी होता रहा, परन्तु राजस्थान में इन्होंने सर्वाधिक धर्म प्रचार किया। इनमें से कुछ साध्वियां बहुत अच्छी लेखिकायें और कवयित्री भी रही हैं। कइयों ने प्राचीन प्रकरणादि ग्रन्थों का अनुवाद किया और कइयों ने मौलिक रचनर्यि भी की है। ज्ञात रचनाओं की सूची इस प्रकार है: प्रेमश्रीजी-जैन प्रेम स्तवन माला, गहूंली संग्रह बल्लभश्रीजी--पेंतीस बोल का थोकड़ा, वैराग्य शतक अनुवाद, संबोध सत्तरी अनुवाद प्रमोदश्रीजी--प्रमोद विलास, रत्नत्रय विनयश्रीजी-युगादिदेशना, उपासक-दशा सूत्र अनुवाद बुद्धिश्रीजी-चैत्यवन्दन चविंशतिका सानु वाद, श्रीचन्द्र चरित्र हीराश्रीजी-जन कथा संग्रह 64. पं. काशीनाथ जैन . श्वेताम्बर समुदाय में साधु-साध्वियों के अधिक होने से श्रावक समाज में विद्वान् और लेखक कम हुए हैं। इनमें से काशीनाथ जैन महापुरुषों के सचित्र जीवन-चरित्र प्रकाशित करने में विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। ये वैसे तो यति शिष्य रहे हैं परन्तु इन्होंने स्वयं को यति शिष्य न लिख कर पंडित रूप में प्रसिद्ध किया। इनकी पुस्तकों का प्रचार भी बहुत अच्छा रहा। वर्षों तक यह एक ही काम में जटे रहे और इसे अपनी आजीविका का साधन बना लेने के कारण ही इतना साहित्य लिख सके। इनका मूल निवास स्थान बमोरा (मेवाड़ा) था। इनकी प्रकाशित पुस्तकों की सूची इस प्रकार है:अभय कुमार अरणिक मुनि प्रानन्द श्रावक आदिनाथ चरित्र उत्तम कुमार कयवन्ना सेठ कामदेव श्रावक काम कुम्भ माहात्म्य चन्दन बाला जम्बूस्वामी चन्दराजा चम्पक सेठ जय विजय तेरह काठिये नल दमयन्ती नेमिनाथ चरित्न पार्श्वनाथ चरित्र ब्राहमी सुन्दरी महाशतक श्रावक मृगावती रत्नसार कुमार रत्न शेखर राजीमती सजा यशोधर राजा हरिश्चन्द्र लकडहारा ललितांग कुमार विजय सेठ विजया सेठानी शीलवती शुकराज कुमार सुर सन्दरी सुदर्शन सेठ सती सीता सुरादेव श्रावक हरिबल मच्छी आदि 65. दुस संपतराय भंडारी __ये अजमेर निवासी हैं। इनका जन्म सं. 1895 में हुआ था। आपकी 'हिन्दी इंग्लिश जिसनेरी भाग-7, भारत दर्शन, तिलक दर्शन, भारत के देशी राज्य, राजनीति विज्ञान' प्रादि
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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