SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 326
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 273 सकल कलानिधि वादि गज, पंचानन परधान । श्री शिवनिधान पाठक चरण, प्रणमी वदे मुनि मान ।।। नव अंकुर जोवन भई, लाल मनोहर होइ। कोपि सरत भूषण ग्रहै, चेष्टा मुग्धा सोइ 120 X x X नारि नारि सब को कहे, किऊंनाइकासू होइ। निज गुण भनि मति रीति धरो, मान ग्रन्थ अवलोइ। 1071 8. उदयराज खरतरगच्छोय भद्रसार के शिष्य उदयराज 17वीं के उत्तरार्घ के अच्छे कवि थे। इनकी राजस्थानी रचनायें सं. 1667 से 1676 तक की प्राप्त है। इस कवि ने करीब 300 दोहे भी बनाये हैं। हिन्दी रचना में “वैद्य विरहिणी प्रबन्ध" 78 पद्यों में है। इसको एकमात्र प्रति अभय जैन ग्रन्थालय में प्राप्त है। 9. श्रीसार ये खरतरगच्छीय क्षेमकीर्तिशाखा के श्री रत्नहर्षजी के शिष्य थे। इनकी रचनाओं का रचनाकाल 17वीं शताब्दी का अंतिम चरण है। आप अच्छे कवि और गद्यकार थे। प्रापकी राजस्थानी में छोटी-मोटी तीसों कृतियां प्राप्त है। हिन्दी में आपका केवल "रघुनाथ विनोद" नामक ग्रन्थ, अपूर्ण ही प्राप्त है। उदाहरण के तौर पर एक पद्य देखिये:-- यां • शिव शिव करि घ्यावत है शैवमती, ब्रह्म ब्रह्म नामकरि वेद मांहि ध्याइये। बुद्ध बुद्ध नाम लै लै ध्यावत है बौधमती, कृष्ण कृष्ण राम राम ऐसे लिव लाइये। एकाएक वीतराग ध्यावे जिन सासनी, युं अल्ला अकबर कहि किसहि बताइये। कह कवि सार तीन लोक के है नाथ एकु, कथनी में भेद तापें नाम न्यारे पाइये। गोस्वामी तुलसीदास रचित कवितावली के पक्ष के साथ सीतागमन वर्णनात्मक इस पशु को तुलना कीजिये: खेद भयो परस्वेद चल्यो कहि सार कहावत अरछी कहानी। हाथ कटी डग ध्यारि चल फिर बैठ रहे रघुनाथ को रानी। पूछे यजू जाईबो कितनो अब दूरि रही अपनी 'जधानी। नैन सरोवर नीर भरे छिलकं निकस भसंवां मिसो पानी॥19॥ 10. कवि केशव ये खरतरगच्छोय दयारत्न के शिष्य थे। इनका जन्म नाम केशव और दीक्षानार कीर्तिवर्धन था। इन्होंने "सदैवच्छ सामलिंगा चौपई" सं. 1697 में रची, जो "सदयवस प्रबन्ध" के परिशिष्ट में प्रकाशित होचकी है। इस कवि न हिन्दी में भी कई उल्लेखनीय रचना की हैं जिनमें से "चतुरप्रिया" नायक-नायिका भेद सम्बन्धी रचना दो उल्लासों में प्राप्त है । इसकी पद्य संख्या 86 और 48 है। सं. 1704 में इसकी रचना पूर्ण हुई है। इसी कवि ने "जन्म प्रकाशिका" नामक ज्योतिषग्रन्थ मेड़ता के संघपति राजसिंह, अमीपाल, वीरपाल के लिये 278 दोहों में रची है। इसी तरह कवि को तीन अन्य रचनायें दोहा छंद में रचित प्राप्त है1. भ्रमर बत्तीसी 2. दीपक बत्तोसी और 3. प्रीत छत्तीसी। इन तीनों रचनामों में पीछे से स्वयं कवि ने कई दोहे बनाकर बढा दिये हैं। इसीलिये भ्रमरबत्तीसो में 48 पोर प्रोत छत्तीगी में 52 दोहे मिलते हैं।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy