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________________ :266 में ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए भी व्याख्यान देने का क्रम जारी रहता है। राजस्थान में *कड़ों व्याख्यानी साध हैं अतः यदि लिपिबद्ध किया जाए तो प्रवचन-साहित्य प्रति वर्ष दिपक परिमाण में सामने प्रा सकता है। पर वर्तमान में सर्वत्र ऐसी व्यवस्था नहीं है। जो प्रभावशाली प्राचार्य और संत हैं, उनके चातुर्मास कालीन प्रवचनों को लिपिबद्ध करने की माडी- कहीं व्यवस्था है। परिणामस्वरूप संपादित होकर कई प्रवचन-संग्रह प्रकाशित हए.लोकन अप्रकाशित प्रवचन-साहित्य बड़ी मात्रा में संरक्षित है। जो ज्वचन-संचालन प्रमाणित हुए है उनमें प्रमुख हैं-जवाहर किरणावली भाग 1-35 (आचार्य श्री जवाहरलालजी), संस्कृति का राजमार्ग, प्रात्म दर्शन (आचार्य श्री गणेशीलालजी म.), दिवाकर दिव्य ज्योति भाग 1-21 (जन दिवाकर श्री चौथमलजी म.), हीरक प्रवचन भाग 1-10 (श्री हीरालालजी न.), प्रवचन डायरी भाग 1-4(प्राचार्य श्री तुलसी), प्राध्यात्मिक प्रालोक भाग 1-4. मायात्मिकसाधना भाग 1-2, प्रार्थना-प्रवचन, गजेन्द्र व्याख्यानमाला भाग 1-3(प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म.), साधना के सूत्र, अन्तर की ओर भाग-1-2 (श्री गध कर मुनि) प्रवचन भा, प्रवचन सुधा, धवल ज्ञान धारा, साधना के पथ पर, जीवन ज्योति (मरुधर केसरी श्री मिश्रीमर जी म.), पावस प्रवचन भाग 1-5, ताप और तप, समता दर्शन और व्यवहार, शान्ति के सोपान (सराचार्य श्री नानालालजी म.), जिन्दगी की मुस्कान, साधना का राज मान(श्रीकर मणिका और पालोक (साध्वी श्री उमराव कुंवरजी), पर्युषण पाराधना, दुर्लभ मंग चतुष्टय (शाबी भी मनासुन्दरीजी) । संक्षेप में प्रवचन साहित्य की विशेषताओं को इस प्रकार रखा जा सकता है :--- . (1) इनमें किसी शास्त्रीय विषय को बड़ी गहराई के साथ उटाकर किसोरतिर कथानक या प्रसंग के माध्यम से इस प्रकार प्रा बढ़ाया जाता है कि वह कथा था प्रसंग अपने मल आगमिक भाव को स्पष्ट करता हया हमारे वर्तमान जीवन की समस्यामों एवं उलझनों का भी समाधान देता चलता है। (3) इनके विषय उन प्रवृत्तियों और विचारों से सम्बन्ध होते हैं जिनसे व्यक्ति को अपना पान्तरिक जीवन शुद्ध, समाज को स्वस्थ्य और प्रगतिशील तथा सर्वजाति समभाव, सर्व धर्म समभाब पौर विश्वमंत्री भाव जागत करने की प्रेरणा मिलती है। (3) ये प्रवचन मूलतः आध्यात्मिक होने पर भी सगसानयिक जीवन संदर्भो और विश्व समस्याओं से जुड़े होते हैं। इनमें प्रात्मानुशासन, विश्वबन्धुप, एकता, का सहयोग, सहअस्तित्व जैसी जीवन निर्माणकारी और बिहारी भावनामों पर विशेष बल होने से इनकी अपील सदं जन-हितकारो और काहि मुक्त होती है। (4) ये प्रवचन प्रवचनकार की पदयात्रा के अनुभवों को साजगी, कासार रम की पवित्रता, प्रसंगानुकूल असरकारक कथानों, दृष्टान्तों और रूपकों से एक होते ये प्रवचन प्रालंकारिक बनाव शृंगार से परे धनमति की गहराई, प्रतस्पौं मार्मिकता, ज्ञात-अज्ञात कवियों की पदावली, लोकधनों.विविध-राग-रागिनियों, संस्कृत श्लोकों, प्राकृत गाथाभोंऔर मर्मस्पशी सूक्तियों से रहते हैं। साधारण कथ्य मौर घटना में भी ये प्राण फूंक देते हैं जो जीवन मोड़ का कारण बनता है।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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