SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 291
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 240 बम्ब एवं माता का नाम कुशलांजी था। दस वर्ष की अल्प वय में अपनी माता जी के साथ वि. सं. 1857 की चैत्र पूर्णिमा को उन्होंने प्राचार्य भीखणजी से दीक्षा ग्रहण की। वि. सं. 1878 की वैशाख कृष्णा नवमी को युवाचार्य और इसी वर्ष माघ कृष्णा नवमी को प्राचार्य पद परमासीन हए। छोटी रावलिया में वि. सं. 1908 की माघ कृष्णा चतुर्दशी को 62 वर्ष की अवस्था में स्वर्गवास हुआ। इनकी 'अथ पांच व्वहार ना बोल' शीर्षक एक राजस्थानी लघु गद्य, रचना मिलती है जो केवल तीन पत्नों में है। इसमें साधुओं के कल्पाकल्प की व्यवस्था का विवरण दिया गया है। 4. कालूजी स्वामी बड़ा :-- इनका जन्म रेलमगरा (मेवाड़ ) में वि. सं. 1899 में हुआ था। लगभग नौ वर्ष बम में वि. सं. 1908 में प्राचार्य ऋषिराम से इन्होंने दीक्षा ली। पचास.वर्ष तक साध बीवन व्यतीत करने के पश्चात् सप्तम प्राचार्य डालगणी के काल में वि. सं. 1958 में दिवंपत्त जानकी साहित्यिक रुचि प्रबल थी । लिपि श द्ध व सुन्दर थी। अपने जीवन काल में मापने तेरापन्य के अनेक हस्तलिखित ग्रन्थों की सुन्दर व शुद्ध प्रतिलिपियां कीं। तेरापंथ की ज्यात का लेखन मापने ही प्रारंभ किया। तेरापन्थ की ख्यात: मेरापन्थ के चतुर्थ संघपति जयाचार्य के काल में इस ख्यात का लेखन आपने प्रारंभ किया। यह ख्यात सन्तों व साध्वियों की अलग-अलग है। प्राचार्य भिक्षु के समय से इस ख्यात का प्रारंभ होता है। इस ख्यात में साधु साध्वियों का बम्बकीय जीवन परिचय, दीक्षा. साधना, तपस्या, स्वाध्याय, धर्म-संघ का प्रचार-प्रसार, साहित्य-सर्जन, सेवा, कलां तथा जीवन से संबंधित विविध घटनाओं का विस्तृत विवरण दिया गया है। यह ख्यात तेरापन्थ के इतिहास का तथ्यात्मक दिग्दर्शन कालक्रम से कराती है। कालजी स्वामी के स्वर्गवास के पश्चात् चौथमल जीवामी ने इसका लेखन प्रारंभ किया। वर्तमान में मुनि मध कर जी इसे हिन्दी में लिख रहे हैं। साधुनों की ख्यात का प्रारंभिक अंश इस प्रकार है : "श्री भिक्ख मुनि नौ जनम गांम ठाम वर्णावीर्य छ । मरुधर देस जोधपुर रा ममराव कमधज राज ठाकर गांमा का मोटा पटायत नयर कंटाल्यै रा। त? बहर बस्ती पोसवाला रा घर घणां। जठे साह बलुजी वंसै उसवाल बडे साजन जाति सकलैचा. दी पांदे तसु भार्या रे उदरे उपनां। माता गरभ में पाया थकां सिंध रो सुपणो देख्यो।" 5. जयाचार्य : सर्वतोमुखी प्रतिभा के धनी तेरापन्थ के चतुर्थ प्राचार्य जीतमल जी या जयाचार्य का जन्म जोधपुर संभाग के रोमट गांव में वि. सं. 1860 की आश्विन शुक्ला चतुर्दशी को हुआ। आपके पिता पोसवाल जाति के गोलछां गोत्रीय श्री प्राईदानजी थे। माता का नाम कल्लजी था। वि.सं. 1869 की माघ कृष्णा सप्तमी को नो वर्ष की अवस्था में द्वितीय प्राचार्य श्री भास्मल जी की भाशा से ऋषिराय ने जयपुर में इन्हें दीक्षा दी। प्राचार्य पद वि. सं. 1908 की माघ पूर्णिमा को बीदासर (चूरू) में ग्रहण किया तथा जयपुर में वि. सं. 1938 की भाद्रपद कृष्णा द्वादशी को स्वर्षवास हुमा।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy