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________________ 233 विस्तृत बालावबोध संवत् 1766 घटा में बनाया, जिसका 3000 श्लोक परिमाण है । इसी घटा में बैगड़ शाखा के सभाचन्द्र ने ज्ञानसुखडी संवत् 1767 में रचा । इनके अतिरिक्त भी खरतरगच्छीय लेखकों बहुत सी गद्य रचनायें हैं पर उनमें रचना स्थान का उल्लेख नहीं है । के लिये तो प्रायः राजस्थान में रचे जाने की संभावना की जा सकती है, क्योंकि इस गच्छ का प्रचार व प्रभाव राजस्थान में ही अधिक रहा है । तपागच्छ का गुजरात में । इसलिये इस निबन्ध में खरतरगच्छ के साहित्य का ही अधिक उल्लेख हुआ है । 19वीं शताब्दी में साहित्य रचना पूर्वापेक्षा कम हुई । रचनायें तो और भी कम हैं । उल्लेखनीय श्वेताम्बर गद्य सुख ख. रत्नधीर ने भुवनदीपक नामक प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रन्थ का विस्तृत बालावबोध संवत् 1806 में बनाया । यह दिल्ली के नवाब के कहने से हिन्दी में लिखा गया । इसके बाद चैनने वैद्यक ग्रन्थ शतश्लोकी, बैद्यजीवन और पथ्यापथ्य पर टब्बा अर्थात् शब्दार्थ लिखा । यह रचना संवत् 1820 के लगभग हुई । कवि रघुपति ने दुरिअर बालावबोध रचा जिसकी प्रति 1813 की प्राप्त 1 कार इस शताब्दी के उल्लेखनीय विद्वानों में उपाध्याय क्षमा कल्याण जी ने प्रश्नोत्तर साहित्य शतक भाषा संवत् 1853 बीकानेर में और अंबड चरित्र संवत् 1854 में रचा। दूसरे ग्रन्थश्री ज्ञानसारजी जिन्होंने श्रानन्दधनजी के चौबीसी और पदों पर विस्तृत विवेचन संवत् 1866 के श्रासपास किशनगढ़ में रचा । उन्होंने और भी कई बालावबोध और गद्य रचनायें की हैं जिनमें आध्यात्मगीता बालावबोध, जिनप्रतिमा स्थापित ग्रन्थ, पंच समवाय अधिकार भादि उल्लेखनीय हैं । खरतर आनन्दवल्लभ ने संवत् 1873 से 1882 के बीच कई रचनायें गद्य में कीं जिनमें चौमासा व्याख्यान, अठाई व्याख्यान, ज्ञान पंचमी, मौन ग्यारस, होली के व्याख्यान और दंडक, संग्रहणी, विशेषशतक, श्राद्ध दिनकृत्य बालावबोध उल्लेखनीय हैं । पं. कस्तूरचन्द ने षट्दर्शन समुच्चय बालावबोध की रचना संवत् 1894 में बीकानेर में की। 20वीं शताब्दी में भी वैसे कई पुराने ग्रन्थों पर बालावबोध रचे गये जैसे देवमुनि ने श्रीपाल चरित्र भाषा संवत् 1907 में रचा। सुगनजी ने मूर्तिमंडन प्रकाश, रामलाल जी ने श्रीपाल चरित्र भाषा संवत् 1957, अठाई व्याख्यान 1949, संघपट्टक बालावबोध 1967 में लिखे और स्वतन्त्र ग्रन्थ हिन्दी भाषा बहुत 'से बनाये | इसी तरह यति श्रीपाल जी ने जैन सम्प्रदाय शिक्षा नामक बहुत ही महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा । इसी तरह यति पन्नालाल जी ने श्रात्मप्रबोध हिन्दी अनुवाद आदि अन्य अनेक लोगों ने प्राचीन ग्रन्थों के अनुवाद व कुछ मौलिक ग्रन्थ हिन्दी में लिखे । 20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से तो हिन्दी में ही अधिक लिखा जाने लगा है । तेरापन्थी सम्प्रदाय के प्रवर्तक भीखण जी ने राजस्थानी गद्य में 19वीं शताब्दी में काफी लिखा पर वह गद्य संग्रह प्रकाशित नहीं हुआ। इस सम्प्रदाय के सबसे बड़े गद्य लेखक प्राचार्य जीतमल जी जयाचार्य हुये जिन्होंने कथानों का एक बहुत बड़ा संग्रह 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में तैयार किया । जिसका परिमाण करीब 60 हजार श्लोक का बतलाया जाता है । इनकी और भी गद्य रचनायें हैं पर अभी तक प्रायः वे सभी अप्रकाशित हैं । स्थानकवासी सम्प्रदाय के गद्य साहित्य की भी पूरी जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी । की अपेक्षा गद्य में अधिक लिखा जाने लगा। अतः उन सबका विवरण देना यहा संभव नहीं है । संक्षेप में श्वेताम्बर लेखकों ने पद्य के साथ-साथ गद्य में भी निरन्तर साहित्य निर्माण किया है और वह लाखों श्लोक परिमित हैं । 20वीं शताब्दी से तो पद्य
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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