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________________ 16वीं शताब्दी के पूर्वार्ध के गद्य लेखक मरुसुन्दर और उत्तरार्ध के पावंचन्द्र ने तो अनेकों ग्रन्थों के बालावबोध बनाये जिनमें मैरुसुन्दर खरतरगच्छ के प्रसिद्ध विद्वान् थे। इनके कई बालावबोधों में बहुत सी कथाएं पायी जाती हैं। इन्होंने केवल जैन आगम और प्रकरणों की ही नहीं अपितु संस्कृत के अलंकार ग्रन्थ 'विदग्धमखमण्डन' और 'वाग्भटटालंकार' तथा छंदग्रन्थ 'वत्तरत्नाकर' की भी भाषाटीका बालावबोध रूप में बनायी। सं. 1518 से 1535 के बीच में आपने 'शीलोपदेशमाला, पुष्पमाला, षडावश्यक, षष्टिशतक, कर्पूर प्रकर, योगशास्त्र, भक्तामर' आदि 20 ग्रंथों के बालावबोध रचे । इनका एक स्वतन्त्र प्रश्नोत्तर ग्रंथ भी सं. 1535 में रचित प्राप्त है। पार्श्वचन्द्र सूरि ने सर्वप्रथम प्राचारांग, सूत्रकृतांग , दशवकालिक, प्रौपपातिक, प्रश्नव्याकरण, तंदुलवैयालिय, चउसरण, साधप्रतिक्रमण, नवतत्व प्रादि जैन ग्रागमों पर बालावबोध, भाषा-टीकाएं लिखीं। इनका मुख्य केन्द्र नागौर, जोधपुर आदि राजस्थान ही था । खरतरगच्छोय धर्मदेव ने षष्टिशतक बालावबोध (सं. 1515), रत्नरंगोपाध्याय ने रूपकमाला बालावबोध (सं.1582), राजशील ने सिदर प्रकर बालावबोध, अभयधर्म ने दश दृष्टांत कथानक बालावबोध, राजहंस ने दशवैकल्पिक बालावबोध और प्रवचन सार बनाया। शिवसुन्दर ने गौतमपृच्छा बालावबोध सं. 1569 खींवसर में बनाया। ___ 17वीं शताब्दी में भी बालावबोधों के अतिरिक्त कुछ मौलिक प्रश्नोत्तर आदि ग्रन्थ भी रचे गये। उनमें साधकीति रचित सप्तस्मरण बालावबोध को रचना सं. 1611 की दीवाली को बीकानेर के मन्त्री संग्रामसिंह के आदेश से की गई। हर्ष वल्लभ उपाध्याय ने 'अंचलमत चर्चा' की रचना की जिसकी सं.1613 की प्रति प्राप्त है। सोमविमलसरि ने दर्शवकालिक और कल्पसूत्र बालावबोध, चन्द्रधर्म गणि ने युगादिदेवस्त्रोत बालावबोध, चारित्र-सिंह गणि सम्यक्त्वस्तव बालावबोध सं. 1633, जयसौम उपाध्याय ने दो प्रश्नोत्तर ग्रंथ ओर अष्टोतरी विधि सं. 1650 के आसपास बनाये। सं. 1651 में पदमसुन्दर ने प्रवचनसार बालावबोध की रचना की। उपाध्याय समयसुन्दर जी ने रूपकमाला बालावबोध, षडावश्यक बालावबोध और यति आराधना की रचना की। शिवनिधान उपाध्याय ने सं. 1652 से 1680 के बीच में राजस्थान में रहते हुए काफी गद्य की रचनाएं की जिनमें शाश्वत स्तवन बालावबोध की रचना सं. 1652 सांभर में, लघुसंग्रहणी और कल्पसूत्री बालावबोध सं. 1680 अमृतसर में, गुणस्थान गभित जिनस्तवन नामक राजस्थानी रचना पर सं. 1692 सांगानेर में बालावबोध लिखा। इसी तरह राजस्थानी के सुप्रसिद्ध काव्य 'कृष्णरुकमणी री वेलि' की भी बालावबोध भाषा टीका बनायी। आपने विधिप्रकाश नामक ग्रन्थ भी गद्य में रचा है। कृष्ण रुकमणी री वेलि पर समयसून्दर जी के प्रशिष्य जयकीर्ति ने भी सं. 1686 बीकानेर में बालावबोध लिखा। इन्होंने षडावश्यक बालावबोध जैसलमेर के थाहरुशाह की अभ्यर्थना से सं 1693 में बनाया। 17वीं शताब्दी के खरतरगच्छीय विद्वान् विमलकीर्ति ने आवश्यक बालावबोध सं. 1662, जीवविचार-नवतत्व-दण्डक बालावबोध, जयतिहप्रण बालावबोध, दशवकालिक टब्बा, षष्टिशतक बालावबोध, उपदेशमाला टब्बा, प्रतिक्रमण टब्बा, इक्कीसठाणा टब्बा आदि भाषा टीकाएं बनायीं। इनके गुरुभाई के शिष्य विमलरत्न ने वीरचरित्र बालावबोध सं. 1702 सांचौर में बनाया। उदयसागर ने क्षेवसमास बालावबोध की रवना सं 1657 में उदयपुर में की। श्रीपाल ऋषि ने दशवकालिक बालावबोध सं. 1664 में और कनकसून्दर गणि ने दशवकालिक बालावबोध 1666 और ज्ञाताधर्मसूत्र बालावबोध 14000 श्लोक परिमित बनाया। रामचन्द्रसूरि ने कल्पसूत्र बालावबोध, मेघराज जो पार्वचन्द्रसूरि के प्रशिष्य थे, ने राजप्रश्नीय, समवायांग, उत्तराध्ययन, प्रौपपातिक, क्षेत्रसमास बालावबोध और साधसमाचारी की रचना की।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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