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________________ 200 उनकी तात्त्विक और दार्शनिक कृतियों में, एक गहनतम कृति है 'नव पदार्थं सद्भाव' । यह एक उच्चकोटि का दार्शनिक ग्रंथ है। जैन दर्शन सम्मत नौ तत्वों का सूक्ष्म प्रतिपादन जिस समग्रता और सहजता से इसमें हुआ है, वह अन्यत्र दुर्लभ है । श्री मज्जाचार्य और उनकी विशाल साहित्य राशि : , श्राचार्य श्री भिक्षु से लगभग एक शताब्दी पश्चात् श्राये तेरापंथ के चतुर्थ श्राचार्य श्री जीतमलजी स्वामी, जिन्हें हम जयाचार्य की अभिधा से अभिहित करते हैं । वे महान् साहित्कार श्रुतसमुपासना में एकार्णवीभूत होकर उन्होंने जो पाया और युग को दिया वह आज भी उनकी प्रचुर साहित्य राशि में सुरक्षित है । थे । श्रद्वितीय टीकाकारः जयाचार्य की प्रतिमा चमत्कारी थी । उनकी साहित्यिक प्रतिभा बचपन में ही परिस्फुट थी । ग्यारह वर्ष की किशोरावस्था में 'सन्तगुणमाला' नामक कृति की संरचना कर उन्होंने समूचे संघ को चौंका दिया था । यौवन की दहलीज पर पांव धरते ही मानों उनका कवि एक साथ अंगडाई लेकर जाग उठा और मात्र 18 वर्ष की वय में उन्होंने 'पन्नवणा' जैसे गहनतम जैन श्रागम पर, राजस्थानी भाषा में पद्यबद्ध टीका लिख डाली । उसके बाद तो उनकी साहित्य स्रोतस्विनी इतनी तीव्र गति से बही कि थामें भी नहीं थमी। अपने जीवन काल में साढ़े तीन लाख पद्य प्रमाण ग्रन्थ रचना कर मानों उन्होंने राजस्थानी साहित्य की दिशा में नये युग का सूत्रपात कर दिया । 'भगवती की जोड़' श्रापकी श्रद्वितीय कृति है । यह है वृहत्तम जैन आगम भगवती की पद्यबद्ध राजस्थानी टीका । 80,000 पद्य परिमित यह अनुपम कृति अपनी दुरूहता की स्वयंभूत प्रमाण है । सरस राग-रागिनियों में संरब्ध यह टीका साहित्य जगत् की अमूल्य धरोहर है । इसके अतिरिक्त निशीथ, श्राचाराग और उत्तराध्ययन की पद्यबद्ध टीकायें लिखकर उन्होंने न केवल नई साहित्यिक विधा को जन्म दिया, बल्कि उसे सर्वजनीन बनाने में भी वे सफल सिद्ध हुये हैं । जयाचार्य पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने जैन श्रागमों की पद्यमय टीकायें लिखकर राजस्थानी साहित्य को गौरवान्वित किया । उन टीकाओं के माध्यम से उन्होंने गूढ़तम सैद्धांतिक प्रश्नों को समाहित किया और चिन्तन के नये आयाम उद्घाटित किये । टीकाओं की भाषा सरस, सरल और प्रवाहपूर्ण है। उनकी लेखनी की क्षमता प्रद्भुत थी । पद्यों का निर्माण कर लेना उनके लिये कोई कठिन नहीं था । तभी जैसे महाग्रंथ को पांच वर्षों की स्वल्प अवधि में तैयार कर सके । एक दिन में तीन-तीन सौ तो वे 'भगवती की जोड़' भक्त कविः जयाचार्य एक उच्चकोटि के भक्त कवि थे । भक्ति रस से श्रोतप्रोत उनकी अनेक रचनाएं जब लोक-गीतों के रूप में जन-जन के मुंह पर थिरकती हैं तो व्यक्ति की अध्यात्म चेतना संकृत हो उठती है । 'चौबीसी' (चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति) आपकी ऐसी ही भक्ति प्रधान जनप्रिय कृति है । एक अध्यात्म कृति होते हुये भी उसका साहित्यिक रूप भी कम निखरा हुआ नहीं है ।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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