SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जड़ावजी : इनका जन्म सं. 1898 में सेठों की रीया में हुआ था । बाल्यावस्था में ही इनका विवाह कर दिया गया । कुछ समय बाद ही इनके पति का देहान्त हो गया। परिणामस्वरूप इन्हें संसार के प्रति विरक्ति हो गई भौर 24 वर्ष की अवस्था में सं. 1922 में इन्होंने प्राचार्य रत्नचन्द्र जी म. के सम्प्रदाय की प्रमुख शिष्या रम्भाजी के पास दीक्षा अंगीकृत करली। रंभाजी की 16 विशिष्ट साध्वियां थीं जिनमें ये प्रधान थीं । नेत्र ज्योति क्षीण हो जाने से संवत् 1950 से अन्तिम समय तक ये जयपुर में ही स्थिरवासी बन कर रहीं। संवत् 1972 में ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्दशी को इनका स्वर्गवास हुआ । 4. सती जड़ाव जी जैन कवयित्रियों में नगीने की तरह जड़ी हुई प्रतीत होती हैं । यद्यपि ये अधिक पढ़ी लिखी नहीं थीं पर कविता करना इनकी जीवनचर्या का एक अंग बन गया था । 50 वर्ष के सुदीर्घ साधना काल में इन्होंने जीवन के विविध अनुभव श्रात्मसात् कर काव्य में उतारे । इनका जीवन जितना साधनामय था काव्य उतना ही भावनामय । इनकी रचनाओं का एक संकलन "जैन स्तवनाकली" नाम से जयपुर से प्रकाशित हुआ है। प्रवृत्तियों के आधार पर इनकी रचनाओं को चार वर्गों में बांट सकते हैं- स्तवनात्मक, कथात्मक, उपदेशात्मक और तात्विक । सुमति कुमति को चौढालियों, अनाथी मुनि रो सतढालियो, जम्बू स्वामी को सतढालियो, इनकी कथात्मक रचनायें हैं । सरल बोलचाल की राजस्थानी में विविध राग-रागिनियों में हृदय की उमड़ती भावधारा को व्यक्त करने में ये बड़ी कुशल हैं। लोक व्यवहार और प्राकृतिक वातावरण की भावभूमि पर लम्बे-लम्बे सांगरूपक बांधने में इन्हे विशेष सफलता मिली है । पावंता जी: ये पूज्य श्री अमरसिंह जी म. की परम्परा से संबद्ध हैं । इनका जन्म श्रागरा के निकट खेड़ा भांडपुरी गांव में संवत् 1911 में हुआ । इनके पिता का नाम श्री बलदेव सिंह जी चौहान व माता का धनवती था। संवत् 1924 में श्री कंवरसेन जी महाराज के प्रतिबोध से इन्होंने साध्वी हीरादेवी जी के पास दीक्षा ग्रहण की। ये तपस्विनी संयम-साधिका, प्रभावशाली व्याख्याता और कवित्वशक्ति की धनी थीं । 'जैन गुर्जर कवियों' भाग 3 खण्ड 1 पृ. 389 पर इनकी चार रचनाओं का उल्लेख है - वृत्त मंडली (सं. 1940), ( 2 ) श्रजितसेन कुमार ढाल (सं. 1940), ( 3 ) सुमति चरित्र (सं. 1961), (4) भरिदमन चौपई (सं. 1961 ) । इनकी कई गद्य कृतियां भी प्रकाशित हैं । 5. 6. भूरसुन्दरी: इनका जन्म संवत् 1914 में नागौर के समीप बुसेरी नामक गांव में हुआ । इनके पिता का नाम प्रखयचन्द जी रांका और माता का रामबाई था । अपनी बुआ से प्रेरणा पाकर 11 वर्ष की अवस्था में साध्वी चम्पाजी से इन्होंने दीक्षा ग्रहण की। पद्य और गद्य दोनों पर इन का समान अधिकार था । इनकी रचनायें मुख्यतः स्तवनात्मक और उपदेशात्मक हैं । इन्होंने कई सुन्दर पहेलियां भी लिखी हैं । बीकानेर से इनके निम्नलिखित 6 ग्रंथ प्रकाशित हुये हैं । 1. इस संबंध में 'महावीर जयन्ती स्मारिका' भप्रेल 1964 में प्रकाशित -- डा. नरेन्द्र भानात का 'जड़ावजी की काव्यसाधना' लेख दृष्टव्य है । 2. विस्तृत जानकारी के लिये देखिये 'साधनापथ की समर साधिका' ग्रंथ, लेखिका - साध्वी श्री सरना जी ।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy