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________________ 184 हैं-पाठ कर्मों की चौपाई, जम्बू स्वामी की सज्झाय, नन्दन मणिहार की चौपाई, मल्लिनाथ जी की चौपाई, महावीर जी को चौढालियो, कमलावती की ढाल, एवन्ता ऋषि की ढाल, गौतमस्वामी को रास, आषाढ़ भति मनि को पंचढालियो. सती नरमदा की चौपाई, करकंडु की चौपाई, देवकी राणी की ढ़ाल, मेतारज मनि चरित्र राममि का पंचढालिया, राजा श्रेणिक रो चौढ़ लियों, लालिभद्र को पढ़ालियो, महासती चेलना की ढाल, श्रेयांस कुमार की ढाल, कलावती की चौपाई, चन्दनवाला की ढाल आदि ।। इन रचनाओं के अतिरिक्त इन्होंने पच्चीसी संज्ञक कई रचनायें लिखीं।' इनमें संबद्ध विषय के गुणावगुणों की चर्चा करते हो प्रात्मा को निर्मल बनाने की प्रेरणा दी गई है। इन रचनाओं में वय पच्चीसी, जोबन पच्चीसी, चित्त समाधि पच्चीसी, ज्ञान पच्चीसी, चेतन पच्चीसी, दीक्षा पच्चीसी, कोध पच्चीसी, माया पच्चीसी, लोभ पच्चीसी, निन्दक पच्चीसी आदि । परिमाण की दृष्टि से रायचन्द जी की सार्वाधिक रचनायें प्राप्त हुई हैं। विषय की दृष्टि से एक ओर इन्होंने ऋषभदेव, नेमिनाथ, महावीर आदि तीर्थकसें, जम्बू स्वामी, गौतम स्वामी, स्थलिभद्र आदि श्रमणों, तेजपाल, वस्तुपाल अादि श्रेष्ठियों, तथा चंदनवाला, नमदा, कलावती, पूष्पा चला आदि सतियों को अपने ग्राख्यान का विषय बनाया है तो दूसरी ओर अपन प्राराध्य के चरणों में भक्ति भावना से पूर्ण पद लिखते हये जीवन-व्यवहार में उपयोगी उपदेश और चेतावनियां दी हैं। इनका सारा काव्य लोकममि पर आश्रित है और उसमें राजस्थान को सांस्कृतिक गरिमा के सरस चित्र मिलते हैं। (4) चौथमल:--- ये प्राचार्य श्री रघुनाथ जी म. के शिष्य मुनि श्री अमीचन्द जी के शिष्य थे। इनका जन्म संवत् 1800 में मेड़ता के निकट भंवाल में हया। इनके पिता का नाम रामचन्द्र जी व माता का गुमान बाई था। संवत् 1810 में माघ में गाला पंचमी को इन्होंने दीक्षा अंगीकृत की। 70 वर्ष का संयम पालन के बाद संवत 1880 में मेड़ता में इनका निधन हुया। ये सुमधर गायक और कवि थे। इनकी जिन रचनायों का पता चला है, उनमें मुख्य हैजयवन्ती की ढाल, जिनरिख-जिनपाल, सेठ सूदर्शन, नंदन मणियार, सनतकुमार चौढालिया, महाभारत ढाल सागर (हाल संख्या 163), रामायग.श्रीपाल चरित्र, दमघोप चौपाई, जम्ब चरित्र, ऋषि देव ढाल, तामली तापस चरित्र प्रादि । रामायण और महाभारत की कथा जो जैन दष्टि से पद्यबद्ध कर इन्होंने अत्यन्त लोकप्रियता प्राप्त की। (5) दुर्गादास:-- इनका जन्म संवत् 1806 में मारवाड़ जंक्शन के पास सालटिया गांव हुमा में। इनके पिता का नाम शिवराज जी और माता का नाम सेवादेवी था। 15 वर्ष की लघु वय में संवत् 1821 में मेवाड़ के ऊंठाला (अब वल्लभनगर) नामक गांव में इन्होंने प्राचार्य कुशलदास जी 1. इस संबंध में 'मरुधर केसरी मुनि श्री मिश्रमल जी म. अभिनन्दन ग्रंथ' में प्रकाशित पं. मुनि श्री लक्ष्मीचन्द जी म. सा. का 'संत कवि रायचन्द जी और उनकी रचनायें' (पृ. 420-429) लेख द्रष्टव्य है। 2. देखिये--कुमारी स्नेहलता माथुर का 'कवि रायचन्द और उनको पच्चीसी संशक रवनायें लघुशोध प्रबन्ध (अप्रकाशित---राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर) । इन की हस्तलिखित प्रतियां आ वि.ज्ञा. भ. जयपुर में सुरक्षित ।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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