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(अ) संत कवि
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जयमल्ल:--
संत कवि आचार्य श्री जयमल्ल जी का स्थानकवासी परम्परा के कवियों में विशिष्ट स्थान है। इनका जन्म संवत् 1765, भादवा सुदी 13 को लांबिया (जोधपुर)नामक गांव में हुआ इनके पिता का नाम मोहन लाल जी समदड़िया तथा माता का नाम महिमादेवी था। संवत्। 1788 में इन्होंने प्राचार्य श्री भधर जी म.सा. के पास दीक्षा व्रत अंगीकार किया। ये साधना में वज्र की तरह कठोर थे। श्रमण जीवन में प्रवेश करते ही एकान्तर (एक दिन उपवास, एक दिन आहार) तप करने लगे। यह तपाराधना 16 वर्ष तक निरन्तर चरलती रही। अपने गुरु के प्रति इनकी असीम श्रद्धा थी। भधर जी के स्वर्ग सिधारने पर इन्होंने कभी न लेटने की प्रतिज्ञा की थी फल स्वरूप 50 वर्ष (जीवन पर्यन्त) तक ये लेट कर न सोये। संवत 1853 की वैशाख शुक्ला चतुदर्शी को नागौर में इनका स्वर्गवास हुआ।
प्राचार्य जयमल्ल जी अपने समय के महान् प्राचार्य और प्रभावशाली कवि थे। सामान्य जनता से लेकर राजवर्ग तक इनका सम्पर्क था। जोधपुर नरेश अभयसिंह जी, बीकानेर नरेश गजसिंह जी, उदयपुर के महाराणा रायसिंह जी (द्वितीय) के अतिरिक्त जयपुर और जैसलमेर के तत्कालीन नरेश भी इनका बड़ा सम्मान करते थे। पोकरण के ठाकुर देवी सिंह जी चांपावत, देवगढ़ के जसवंतराय, देलवाडा के राव रघु आदि कितने ही सरदार इनके उपदेश सुनकर धर्मानरागी बने और आखेट चर्या न करने की प्रतिज्ञा की। 'सूरज प्रकाश' के रचियता यशस्वी कवि करणीदान भी इनके सम्पर्क में आये थे।
मुनि श्री मिश्रीलाल जी 'मधुकर' ने बड़े परिश्रम से इनकी यत्र-तत्र बिखरी हुई रचनाओं का 'जयवाणी' नाम से संकलन किया है। इस संकलन में इनकी 71 रचनायें संकलित हैं । इम समस्त रचनाओं को विषय की दष्टि से चार खण्डों में विभक्त किया गया है-स्तुति, सज्झाय, उपदेशी पद और चरित्र। इन संकलित रचनाओं के अतिरिक्त भी इनकी और कई रचनायें विभिन्न भण्डारों में सुरक्षित हैं। हमारी दृष्टि में जो नई रचनायें हैं उनमें से कुछेक के नाम इस प्रकार हैं।
1. चन्दनबाला की सज्झाय 3. श्रीमती जी नी ढाल 5. अंजना रो रास 7. कलकली की ढाल 9. क्रोध की सज्झाय 11. सोलह सती की सज्झाय व चौपई 13. दुर्लभ मनुष्य जन्म की सज्झाय 15. इलायची पुत्र को चौढालियो 17. नव नियाणा की ढालो 19. मिथ्या उपदेश निषेध सज्झाय 21. बज्र पुरन्दर चौढालिया
मगलोढ़ा की कथा 4. मल्लिनाथ चरित 6. पांच पांडव चरित 8. नंदन मनिहार 10. प्रानन्द श्रावक 12. अजितनाथ स्तवन 14. रावण-विभीषण संवाद 16. नव तत्व की ढाल 18. दान-शील-तप-भावना सज्झाय 20. . लघु साधु बन्दना 22. कुंडरीक पुण्डरीक चौढालिया
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प्रकाशक-सम्मति ज्ञानपीठ, आगरा । इन समस्त रचनाओं की हस्तलिखित प्रतियां प्राचार्य श्री विनयचन्द्र ज्ञान भंडार. लाल भवन, जयपुर में सुरक्षित हैं।