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सुदर्शन श्रेष्ठिरास:
___ संवतोल्लेख वाली सुदर्शन श्रेष्ठि रास या प्रबन्ध की रचना संवत् 1501 में हुई है । 225 पद्यों के इस रास के रचियता के संबंध में प्रत्यन्तरों में पाठ-भेद पाया जाता है। श्री मोहन लाल देसाई ने इसका रचयिता तपागच्छीय मनिसून्दरसूरि के शिष्य संघविमल या शुभशील माना है, पर बीकानेर के वहद ज्ञान भण्डार में जो प्रति उपलब्ध है उसमें 'तपागच्छी गुरु गौतम सभायें मां श्री मुनिसुन्दरसूरि पू.' के स्थान पर 'चन्द्रगच्छी गौतम सभायें मां श्री चन्द्रप्रभसूरि' पाठ मिलता है। रास का चरित नायक सुदर्शन सेठ है जो अपने शीलधर्म की निष्ठा के कारण बहुत ही प्रसिद्ध है।
कविवर देपाल:--
इस शताब्दी के प्रारम्भ में देपाल नामक एक उल्लेखनीय सुकवि हमा है। 17वीं शताब्दी के कवि ऋषभदास ने अपने से पूर्ववर्ती प्रसिद्ध कवियों में इसका उल्लेख किया है। 'कोचर व्यवहारी रास' के अनुसार यह कवि दिल्ली के प्रसिद्ध देसलहरा, साह समरा और सारंग का माश्रित था। देपाल कवि की रचनाओं में तत्कालीन अनेक रचना-प्रकारों का उपयोग हा है। रास, सूड, चौपई, धवल, विवाहला, मास, गीत, कडावा एवं पूजा संज्ञक रचनायें मिलती हैं जिनकी संख्या 18 है।
संघकलश:--
16वीं शताब्दी की जिन रचनाओं में रचना स्थान, राजस्थान के किसी ग्राम या नगर का उल्लेख हो ऐसी सर्व प्रथम रचना 'सम्यकत्वरास' है। यह मारवाड़ के तलवाडा गांव में संवत् 1505 मंगसिर महिने में रची गयी थी। संवत 1538 की लिखी हई उसकी प्रति पाटण भण्डार में है। रास के प्रारम्भ में कवि ने तलवाडा में 4 जैन मन्दिर व होने का उल्लेख किया है :--
तब कोई मारवाड कहीजई. तलवाडों तेह माह गणीजई, जाणी जे सचराचरी। तिहां श्री विमल, वीर, शांति पास जिन सासणधीर, ए धारइ जिणवर नमई ।
ऋषिवर्द्धन सूरि:
रचना स्थान के उल्लेख वाली कृतियों में अंचलगच्छीय जयकीर्ति सूरि शिष्य ऋषिवर्द्धन सूरि का 'नल दमयन्ती रास' उल्लेखनीय है। 331 पद्यों के इस रास की रचना संवत् 1512 में चित्तौड़ में हुई। नल दमयन्ती की प्रसिद्ध कथा को इस रास में संक्षेप में पर बहुत सुन्दर ढंग से व्यक्त की है। प्रारम्भ और अन्त के पद्य इस प्रकार हैं:
सकल संघ सुह शांतिकर, प्रणमीय शांति जिनेसु । दान शील तप भावना, पुण्य प्रभाव भणेसू ॥ सुणता सुपुरिष बर चरिय, बाघइ पुण्य पवित । दवयंती नलराय नु, निसुण चारु चरित ॥
अंत-संवत् पनर बारोतर वरसे, चित्रकूट गिरि नयर सुवासे, श्री संघादर घणई। एह चरित जेह भणई भणावई, ऋद्धि वृद्धि सुख उच्छवावई, नितु नितु मन्दिर तस तणई ए।