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करीब 20 काव्य लिखकर मां भारती की अपूर्व सेवा की है। 'वीरोदय' भगवान महावीर के जीवन पर आधारित महाकाव्य है जो हमें महाकवि कालिदास, मारवि, श्रीहर्ष एवं माष आदि के महाकाव्यों की याद दिलाता है। इस काव्य में इन कवियों के महाकाव्यों की शैली को पूर्ण रूप से अपनाया गया है । तथा “माघे सन्ति त्रयो गणाः" बाली कहावत में वीरोदय काव्य में पूर्णतः चरितार्थ होती है।
जयोदय काव्य में जयकुमार सुलोचना की कथा का वर्णन किया गया है। कान्य का प्रमुख उद्देश्य अपरिग्रह व्रत का महात्म्य दिखलाना है। इस काव्य में 28 सर्ग हैं जो आचार्य श्री के महाकाव्यों में सबसे बड़ा काव्य है। इसकी संस्कृत टीका भी स्वयं आचार्य श्री ने की है जिसमें काव्य का वास्तविक अर्थ समझने में पाठकों को सुविधा दी गई है। यह महाकाव्य संस्कृत टीका एवं हिन्दी अर्थ सहित शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है।
दयोदय चम्पू में मृगसेन धीवर की कथा वर्णित है। महाकाव्यों में सामान्य वर्ग के व्यक्ति को नायक के रूप में प्रस्तुत करना जैन कवियों की परम्परा रही है और इस आधार पर इस काव्य में एक सामान्य जाति के व्यक्ति के व्यक्तित्व को उभारा गया है । धीवर जाति हिंसक होती है किन्तु मगसेन द्वारा अहिंसा व्रत लेने के कारण इसके जीवन में कितना निखार आता है और अहिंसा व्रत का कितना महत्व है इस तथ्य को प्रस्तुत करने के लिये आचार्य श्री ने दयोदय चम्पू काव्य की रचना की है। इसमें सात लम्ब (अधिकार) हैं और संस्कृत गद्य पद्य में निर्मित यह काव्य संस्कृत भाषा का अनूठा काव्य है।
आचार्य श्री ने संस्कृत में काव्य रचना के साथ-साथ हिन्दी में भी कितने ही काव्य लिखे हैं। कुछ प्राचीन ग्रन्थों का हिन्दी में अनुवाद किया तथा कर्तव्य-पथ-प्रदर्शन जैसी कृतियों द्वारा जन साधारण को छोटी-छोटी कथाओं के रूप में दैनिक कर्तव्यों पर प्रकाश डाला है। ऋषभदेव चरित हिन्दी का एक प्रबन्ध काव्य है जिसके 17 अध्यायों में आदि तीर्थकर ऋषभदेव का जीवन चरित निबद्ध है। इस काव्य में आचार्य श्री ने मानव को सामान्य धरातल से उठाकर जीवन को सूखी एवं समन्नत बनाने की प्रेरणा दी है।
उक्त विद्वानों के अतिरिक्त पं.चैनसखदास न्यायतीर्थ, पं. इन्द्रलाल शास्त्री, पं. मलचन्द शास्त्री, पं. श्री प्रकाश शास्त्री के नाम विशेषतः उल्लेखनीय हैं। प. चैनसुखदास जी का जैनदर्शनसार, भावना-विवेक, पावनप्रवाह, निक्षेपचक्र संस्कृत की उत्कृष्ट रचनायें हैं । जैन दर्शनसार में जैन दर्शन के सार को जिस उत्तम रीति से प्रतिपादित किया गया है वह प्रशंसनीय है। पं. मलचन्द शास्त्री का अभी वचनदूतम् खण्ड काव्य प्रकाशित हुआ है। इस काव्य में मेघदूत की चतर्थपंक्ति को लेकर राजल के मनोभावों को नेमि के पास प्रेषित किया गया है।