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न्होंने और भी कृतियां लिखीं। संस्कृत रचनाओं के अतिरिक्त इनकी कुछ रचनायें हिन्दी में भो उपलब्ध होती है। लेकिन कवि ने पाण्डव पुराण में उनका कोई उल्लेख नहीं किया है । राजस्थान के प्रायः सभी ग्रन्थ भण्डारों में इनकी अब तक जो कृतियां उपलब्थ हई हैं वे निम्न प्रकार है:--
संस्कृत रचनाएं 1. ऋषि मंडल पूजा
अनन्त व्रत पूजा अम्बिका कल्प
4. अष्टान्हिका व्रत कथा 5. अष्टान्हिका पूजा
6. अढाई द्वीप पूजा 7. करकण्ड चरित्र
कर्मदहन पूजा 9. कार्तिकेयानुप्रेक्षा टीका
गणधरवलय पूजा 11. गरावली पूजा
12. चतुर्विशति पूजा 13. चन्दना चरित्र
14. चन्दनषष्टिव्रत पूजा 15. चन्द्रप्रभ चरित्र
चरित्र शद्धि विधान चितामणि पार्श्वनाथ पूजा
8. जीवंधर चरित्र 19. तेरह दीप पूजा
20. तीन चौवीसी पूजा 21. तीस चौवीसी पूजा
22. त्रिलोक पूजा 23. वपन क्रियागति
24. नन्दीश्वर पंक्ति पूजा 25. पंच कल्याणक पूजा
26. पंच गणमाल पूजा 27. पंचपरमेष्टी पूजा
28. पल्यत्रतोद्यापन पाण्डवपुराण
30. पार्श्वनाथ काव्य पंजिका 31. प्राकृत लक्षण टीका
32. पुष्पांजलिव्रत पूजा 33. प्रद्यम्न चरित्र
34. बारहसौ चौतीस व्रत पूजा 35. लघु सिद्ध चक्रपूजा
36. बृहद् सिद्ध पूजा 37. श्रेणिक चरित्र
38. समयसार टीका 39. सहस्रगुणित पूजा
40. सुभाषितार्णव 17. भट्टारक श्रोभूषण
ये भट्टारक भानुकोर्ति के शिष्य थे तथा नागौर गादी के संवत् 1705 में भट्टारक बने थे। 7 वर्ष तक भट्टारक रहने के पश्चात् इन्होंने अपने शिष्य धर्मचन्द्र को भटटारक गादी देकर एक उत्तम उदाहरण उपस्थित किया था। ये खण्डेलवाल एवं पाटनी गौत्र के थे। साहित्य रचना में इन्हें विशेष रुचि थी। इनकी कुछ रचनायें निम्न प्रकार हैं:-- अनन्तचतुर्दशी पूजा
संस्कृत अनन्तनाथ पूजा भक्तामर पूजा विधान श्रुतस्कंध पूजा सप्तर्षि पूजा
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18. भट्टारक धर्मचन्द्र
भट्टारक धर्मचन्द्र का पट्टाभिषेक मारोठ में संवत् 1712 में हुआ था। ये नागौर गादी के भटारक थे। एक पट्टावली के अनुसार ये 9 वर्ष गहस्थ रहे, 20 वर्ष तक साधु अवस्था में रहे तथा 15 वष तक भट्टारक पद पर आसीन रहे। संस्कृत एवं हिन्दी दोनों के हो थे।
प्रशस्ति के लिये देखिये लेखक द्वारा सम्पादित 'प्रशस्ति संग्रह प्र.सं. 71